Animal Husbandry : Classification Stomach, Feed Management



पशुओं का आमाशय के आधार पर वर्गीकरण | Classification of Animals on the basis of Stomach


पशुओं को आमाशय के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है-

1. रोमन्धी पशु (Ruminant ) :- यह पशु जुगाली करते हैं।
उदा - गाय, भैंस, भेड़, बकरी, हिरण व जिराफ
इनका आमाशय चार भागों में विभक्त होता है-

(I) रूमेन :- ( बांयी तरफ)

➤ यह आमाशय का सबसे बड़ा भाग होता है।
➤ यह आमाशय का 80 प्रतिशत भाग होता है।
➤ यह भोजन के भण्डारण का कार्य करता है।
➤ पी. एच. मान - 5.8-6.8

(II) रेटिकुलम :--
➤ इसवी आकृति मधुमक्खी के छत्ते के समान इस कारण इसे 'इनी कोम्ब भी कहते है ।
➤ आमाशय का सबसे छोटा भाग है।
➤ यह कुल आमाशय का 5 प्रतिशत भाग होता है।
➤ यह नुकीली कील, कांच व अखाद्य वस्तुएं आदि अनावश्यक पदार्थों को पेट में आगे जाने से रोकता है।
➤ यह अतिरिक्त भण्डारण का कार्य भी करता है।

(III) ओमेजन :-
➤ भोजन में अतिरिक्त पानी को अवशोषित करने का कार्य करता है।
➤ यह कुल आमाशय का 7-8 प्रतिशत भाग होता है।

(IV) एबोमेजम(4th आमाशय) :-
➤ इसे सत्य / वास्तविक आमाशय भी कहते हैं।
➤ यह कुल आमाशय का 7-8 प्रतिशत भाग होता है।
➤ ये भोजन का पाचन करता है।
➤ यह पाचक एंजाइम्स व रसों का स्त्रावण करता है।

(2) अरोमन्धी पशु Non Ruminant)
➤ ये पशु जुगाली नहीं करते है।
➤ इनके आमाशय में कोई विभाजन नहीं पाया जाता है, अर्थात आमाशय का केवल एक ही भाग होता है।
उदा० - घोड़ा, कुत्ता, बिल्ली, सूअर, खरगोश, शी व बन्दर आदि ।

(3) आभासी रोमन्धी पशु (Pseudo Ruminant ) :-

➤ ये पशु जुगाली तो करते हैं, परंतु आमाशय तीन भागों में विभवत होता है- (ओमेजम अनुपस्थित)
(i) रूमेन (C1)
(ii) रेटिकुलम (C2)
(iii) एबोमेजम (C3)
उदा०—– ऊँट, लामा


पशुओं का आहार प्रबंधन | Animal Feed Management

पशुओं का आहार प्रबंधन :-

आहार (Ration) :- पशु को 24 घंटे में खाने को दिया जाने वाला पदार्थ आहार कहलाता है।
संतुलित आहार (Balanced Ration) :- ऐसा आहार जिसमें सभी पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में एंव सही अनुपात में विद्यमान होते हैं ।
जीवन निर्वाह आहार (Life Maintenance Ration ):- वह आहार जो पशु को स्वस्थ व शरीर के तापमान एंव भार को यथावत बनाए रखने के लिए दिया जाता है।
उत्पादन आहार (Production Ration) :- आहार की वह मात्रा जो पशु को जीवन निर्वाह आहार के अतिरिक्त उत्पादन कार्यों के लिए दिया जाता है । उदाहरण - दूध उत्पादन, ऊन उत्पादन, मांस उत्पादन, अण्डा उत्पादन, प्रजनन एंव वृद्धि आदि ।
➤ गाय, बैल को 100 किलोग्राम शारीरिक भार पर 2.5 किलोग्राम व भैंस को 3 किलोग्राम शुष्क पदार्थ दिया जाना चाहिए ।
➤ गाय को 3 लीटर दूध पर व भैंस को 2.5 लीटर दूध पर 1 किलोग्राम दाना देना चाहिए ।
➤ कार्य करने वाले बैलों को सामान्य कार्य हेतु 1 से 1.5 किलोग्राम, मध्यम कार्य हेतु 2 से 2.5 किलोग्राम व भारी कार्य हेतु 3 से 4 किलोग्राम दाना जीवन निर्वाह आहार के अतिरिक्त देना चाहिए ।
➤ प्रजनन हेतु काम आने वाले सांड को 2 किलोग्राम दाना देना चाहिए ।
➤ ग्याभिन पशु को 1-2 किलोग्राम दाना प्रतिदिन देना चाहिए ।
➤ पशुओं को 30 ग्राम साधारण नमक प्रति पशु प्रतिदिन देना चाहिए ।
➤ चारों की कमी - अक्टूबर से नवम्बर, अप्रैल से जून

चारा प्रबंधन :-
साइलेज - फसल को हरी अवस्था में काटकर वायुरहित स्थान पर भण्डारित किया गया हरा चारा साइलेज कहलाता है।
➤ नमी की मात्रा - 60 प्रतिशत
➤ शुष्क पदार्थ - 30-50 प्रतिशत
➤ pH मान— 3.5 – 4.2
➤ उपयुक्त फसल - मक्का
➤ साइलेज किण्वित पदार्थ है ।
➤ साइलेज बनाने में 12 सप्ताह या 3 माह का समय लगता है ।
➤ अच्छी साइलेज का गुण :- संरक्षित पौष्टिक चारा, पीला रंग मुक्त चारा, विशिष्ट सुगंध व हल्का खट्टापन
➤ साइलेज बनाने वाली फसलों में शुष्क पदार्थ की मात्रा 30 से 40 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
➤ साइलेज बनाने की क्रिया - साइलोइंग / इनसायलिंग
➤ साइलेज भरने के गड्ढे / बुर्ज – साइलो
➤ साइलेज अधिक कार्बोहाइड्रेट वाली फसलों का बनाया जाता है अन्यथा सङ जाता है ।
➤ मीठी साइलेज में दुग्धाम्ल की मात्रा अधिक व अम्लीय साइलेज में एसीटिक अम्ल की मात्रा अधिक पायी जाती है।
➤ भारत में गड्ढे / खाईनुमा साइलो अधिक प्रचलित हैं ।

रंग व स्वाद के आधार पर वर्गीकरण-
1. बादामी गहरी, मीठी साइलेज
2. अम्लीय, कम बादामी साइलेज
3. हरी साइलेज
4. अधिक खट्टी साइलेज
5. फफूंदीयुक्त साइलेज


हे (Hey) :-
➤ फसल को पुष्पन से पूर्व काटकर छायादार स्थान पर सुखाकर संग्रहित किया गया सूखा चारा हे कहलाता है।
➤ नमी की मात्रा - 14-15 प्रतिशत
➤ शुष्क पदार्थ - 85 - 90 प्रतिशत
➤ उपयुक्त फसल – रिजका, बरसीम
➤ हे 3-6 सप्ताह या 1 - 1.5 माह में बनकर तैयार हो जाता है ।
➤ फलीदार फसल वाली हे में विटामिन A एवं Ca अधिक मात्रा में पाया जाता है
➤ जई एक ऐसी फसल है जिससे हे एवं साइलेज दोनों तैयार किए जा सकते है I
➤ जई एक ऐसी अदलहनी फसल है, जिसे रबी में हरे चारे के रूप में उपयोग किया जाता है ।
➤ बिनौले की खली में गोसीपॉल टॉक्सिन होता है जिसे आयरन सल्फेट मिलाने पर घातकता को कम किया जा सकता है।
➤ खलियों में शुष्क पदार्थ की मात्रा 90 प्रतिशत होती है।
➤ मिश्रित हे का उदाहरण - ग्वार + ज्वार

हे के प्रकार
1. फलीदार फसल वाली हे - मटर, लोबिया, बरसीम, रिजका
➤ विटामिन A सर्वाधिक, विटामिन D व विटामिन C, E पर्याप्त
➤ Ca सर्वाधिक, फास्फोरस मध्यम
2. फलरहित फसल वाली हे - दूब, नेपियर, सूडान घास, चारे वाली फसले जैसे—ज्वार
3. मिश्रित हे - फलीदार + बिना फलीदार - सोयाबीन + सूडान, जई + मटर
4. अनाज वाली की फसल हे - जौ, जई, बाजरा, गेहूँ

विधि - 1. समतल भूमि पर 2 पंक्तियां में 3 तिपाई 4. शस्यागार शोषण
लूंग / लूम :- खेजड़ी की पत्तियों को सुखाकर प्राप्त चारा ।
पाला :- झड़बेरी की सूखी पत्तियां ।
➤ लूंग एवं पाला प्रोटीनयुक्त चारे हैं तथा इन्हें 'अकाल का चारा' भी कहा जाता है।
➤ पशुओं हेतु खाद्य खलियां - कपास, कुसुम, तिल, सरसों, मूंगफली
अखाद्य खलियां - अलसी, अरण्डी, नीम, महुआ
➤ गोबर की खाद में नाइट्रोजन - 0.5 प्रतिशत, फॉस्फोरस - 0.25 प्रतिशत, पोटेशियम - 0.5 प्रतिशत
➤ सरसों की खली में N2 – 5.2%
➤ तिल की खली में N2 – 6.2%
➤ कुसुम की खली में N2 - 7.9%
➤ मूंगफली की खली में N2 - 7.2%







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