मृदा उर्वरता एवं उत्पादकता | Soil Futility & Productivity - सम्पूर्ण अध्ययन

 


मृदा उर्वरता एवं मृदा उत्पादकता (Soil Futility & Productivity)


👉मृदा की वह क्षमता जिसके द्वारा मृदा-स्वास्थ्य को बरकरार रखते हुए फसलोत्पादन किया जाता है उसे मृदा उर्वरता कहते है।
👉आनुवांशिक मृदा उर्वरता मृदा का गुण होता है।
👉सभी उत्पादक मृदाऐं निश्चित तौर पर उर्वरक होती है।
👉एक निश्चित प्रबन्धन के तहत फसल उत्पन्न करने की क्षमता को मृदा उत्पादकता कहते है।

मृदा उत्पादकता (Soil Futility)

👉मृदा की प्रति हैक्टेयर पैदावार देने की क्षमता है तथा उत्पादकता का नाम उत्पाद या उपज है।
👉फसल जितना खाद्य पदार्थ मृदा के अपने प्रयोग में लाती है उसका 20 गुना ह्रास पोषक तत्व अपरदन के कारण होता है।
👉30-40℃ तापमान में मृदा में सूक्ष्म जीव सक्रिय होते है।
👉मृदा में उपलब्ध नाइट्रोजन को निकालने के लिए 0.25% पोटेशियम नाइट्रेट (KNO3) का उपयोग किया जाता है।
👉मृदा में उपलब्ध फास्फोरस को निकालने के लिए 0.5 Mg सोडियम बाइकार्बोनेट (NAHCO3) pH 8.5 का प्रयोग किया जाता है।
👉मृदा में उपलब्ध पोटेशियम को निकालने के लिए 1 Mg उदासी अमोनियम एसीटेट (CH3COONH4) का प्रयोग किया जाता है।
👉नाइट्रोजन पोषक तत्व की उपस्थित के आधार पर मध्यम मृदा उर्वरता के लिए 250-500 kg/ha नाईट्रोजन की मात्रा होनी चाहिए।
👉फोस्फोरस पोषक तत्व की उपस्थित के आधार पर मध्यम मृदा उर्वरता के लिए 20-50 kg/ha फोस्फोरस की मात्रा होनी चाहिए।
👉पोटेशियम पोषक तत्व की उपस्थित के आधार पर मध्यम मृदा उर्वरता के लिए 125-300 kg/ha पोटेशियम की मात्रा होनी चाहिए।
👉Zn एवं Cu पोषक तत्व की उपस्थिति के आधार पर मध्यम मृदा उर्वरता के लिए Zn एवं Cu की 0.5-1.00ppm की मात्रा होनी चाहिये।
👉मैंगनीज (Mn) पोषक तत्व की उपस्थिति के आधार पर मध्यम मृदा उर्वरता के लिए 1.0-3.0ppm की मात्रा होनी चाहिये।
👉बौरोन पोषक तत्व की उपस्थिति के आधार पर मध्यम मृदा उर्वरता के लिए बोरान की 0.33-0.67ppm की मात्रा होनी चाहिये।
👉कार्बनिक पोषक तत्वों की उपस्थिति के आधार पर पर मध्यम मृदा उर्वरता के लिए कार्बनिक पोषक तत्वों में 0.50-0.75% की मात्रा होनी चाहिये।
👉मृदा में उपलब्ध नाइट्रोजन का पता करने लिए एल्केलाइन परमेगनेट विश्लेषण प्रक्रिया अपनायी जाती है।
👉मृदा में अम्लीय परिस्थिति में फास्फोरस पता करने के लिए ब्रे नं.1 प्रक्रिया अपनायी जाती है।
👉मृदा में उदासीन तथा क्षारीय परिस्थिति में फास्फोरस पता करने के लिए ओलसेन्स प्रक्रिया अपनायी जाती है।
👉मृदा में उपलबध पोटेशियम एवं सोडियम का पता करने के लिए फ्लेम फोटोमीटर प्रक्रिया अपनायी जाती है।
👉मृदा में सल्फेट (सल्फर) की उपलब्धता का पता करने के लिए टरबीमेट्रिक प्रक्रिया अपनायी जाती है।
👉मृदा में उपस्थित कार्बनिक तत्वों की उपलब्धता का पता करने के लिए वाल्के एवं ब्लैक त्वरित आक्सीकरण प्रक्रिया (KMNO4)अपनायी जाती है।
👉एच. एफ. क्लीमेन्ट ने शस्य संलेखन (Crop logging) दिया है।
👉शस्य संलेखन का सर्वप्रथम उपयोग हुआ था हवाई द्वीप में गन्ने के लिए।
👉रेबिंग - मृदा में रखें बेकार पदार्थों को जलाकर उष्मा उपचार करना होता है।
👉टीस्ट - ऐसी मृदा जिसमें मोलिबडेनम की अधिकता हो, टीस्ट कहलाता है।
👉मार - यह कच्चा हुमस होता है जो जंगल के हुमस सतह का एक प्रकार है।
👉मारलिंग (Marling) - बलुई मृदा में क्ले डालने को मारलिंग कहते है।

लवणीय व क्षारीय मृदायें (Saline and Alkaline Soils)

👉मृदा में सोडियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम, क्लोराइड, सल्फेट, कार्बोनेट एवं बाइकार्बोनेट लवणों की मात्रा जब अधिक होती है तब मृदा लवणीय एवं क्षारीय हो जाती है।

1. लवणीय मृदा / श्वेत क्षारीय- (Saline Soil) :- वह मृदायें जिनके जड़ क्षेत्र में घुलनशील लवणों की सान्द्रता हानिकारक स्तर से अधिक होती है।
👉लवणीय मृदाओं में घुलनशील लवण होते है-Na ,Ca ,Mg ,Cl व SO4
👉लवणीय मुद्राओं की विद्युत चालकता (EC)4Mhos /cm से अधिक होती है।
👉लवणीय मृदाओं में विनिमेय सोडियम (ESP) 15% से कम होता है।
👉लवणीय मृदाओं का निर्माण साधारणतः 65 सेमी से कम वार्षिक वर्षा वाले शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में होता है।
👉निक्षालन (Leaching) द्वारा लवणीय मृदाओं का सुधार किया जाता है।
👉लवणीय मृदाओं के प्रारम्भिक वर्षों में चावल की फसल को उगाना चाहिए।
👉देश के 85 लाख क्षेत्र में लवणीय व क्षारीय मृदाएँ पाई जाती है।

2. सोडियम मृदा (Sodic soil) / काली क्षारीय, /अलवणी क्षारीय मृदा :- ऐसी मृद्रायें जिनकी भौतिक एवं रासायनिक अवस्था विनिमेय सोडियम की अधिकता के कारण प्रभावित होती है। ऐसी मृदाओं में मृदा का अनूर्णन हो जाता है।
👉साघारणत: 4.8 pH के लिए 35 टन/हैक्टर अम्लीय मृदाओं के लिए चूना उपयोग किया जाता है।
👉चूना युक्त पदार्थ CaCO3, डोलामाइट, क्यूकलाइम, कोर्सेसेल, चोक आदि है।
👉सोडिक मृदा की विद्युत चालकता (EC) < 4M Moshe cm होती है।
👉सोडिक मृदाओं में विनिमेय सोडियम (ESP) >15% प्रतिशत होता है।
👉 सोडिक मृदा का  pH 8.5 (8.5-10.0) होता है।
👉 क्षारीय मृदा का निर्माण 50-90 सेमी औसत वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में होता है।
👉क्षारीय मृदा विकास में तीन चरण पाये जाते है -
     1.लवणीकरण
     2.लवण युक्त क्षारीय मृदा
     3.क्षारीयकरण अर्थात लवणीकरण एवं तीव्र क्षारीय।
👉 लवणीय क्षारीय मृदाओं की विद्युत चालकता (EC )> 4 Mhos/cm, विनियम सोडीयम (ESP) > 15% एवं pH < 8.5 होता है।
👉क्षारीय मृदाओं को जिप्सम (8 Kg. प्रति हैक्टेयर) द्वारा सुधारा जा सकता है।

3.अम्लीय मृदा (Acid soils) :- 
👉 मृदा का pH 5.5 से कम होने पर अम्लीय मृदा कहलाता है।
👉 चाय एवं धान के लिए pH - 4.0-6.0 आवश्यक है।
👉अम्लीय मृदाओं में चाय व धान की खेती उपयुक्त रहती है।
👉यदि मृदा का क्षार-संतृप्ति प्रतिशत 80 से कम होता है तो अम्लीय मृदा कहलाती है।
👉भारत के लगभग 10 लाख क्षेत्रफल में अम्लीय मृदाएँ पाई जाती है।
👉काली मृदाओं को छोड़कर सभी वर्गों में अम्लीय मृदाएँ पायी जाती है।
👉गंधक एवं मोलीब्डेनम को छोड़कर अम्लीय मृदाओं में अनुउपलब्धता हो जाती है।
👉चूना द्वारा अम्लीय मृदा का प्रबन्ध किया जाता है।
👉चूना मिट्टी अम्लता को दूर करके उदासीन बनाती है।
👉भारी (क्ले) मृदाओं में चूने की अधिक मात्रा का उपयोग किया जाता है।
👉अन्नानास में सबसे कम मात्रा में चूने की आवश्कता होती है।
👉सबसे ज्यादा चूने की आवश्यकता जौ, सेम, कपास, मटर, सोयाबीन, चुकंदर, सूर्यमुखी में होती है।
👉मक्का, ज्वार, तम्बाकू, गेहूं की फसलें जिनको चूने की सामान्य मात्रा की आवश्यकता होती है।

👉राजस्थान में मिट्टी के 8 प्रकार पाये जाते है।
👉राजस्थान में पायी जाने वाली मिट्टियों के नाम -
  • 1. रेतीली या बलुई मिट्टी
  • 2. भूरी रेतीली मिट्टी
  • 3. लाल पीली
  • 4. लाल लोमी
  • 5. लाल काली
  • 6. काली मिट्टी
  • 7. कछारी या जलोढ़ मिट्टी
  • 8. भूरी रेतीली मिट्टी
👉 रेतीली या बलुई मिट्टी के चार प्रकार होते है।
  • 1. रेतीली बालू मिट्टी
  • 2. लाल रेतीली मिट्टी
  • 3. पीली भूरी रेतीली मिट्टी।
  • 4. खारी मिट्टी
👉 राजस्थान के नागौर, जोधपुर, पाली, जालौर, चुरू एवं झुंझनू में लाल रेतीली मिट्टी पाई जाती है।
👉राजस्थान में पाली एवं नागौर में पीली भूरी मिट्टी पायी है।
👉राजस्थान में खारी मिट्टी बीकानेर, जैसलमेर, बाडमेर, और नागौर में पायी जाती है।
👉राजस्थान में रेतीली मिट्टी बाडमेर, जालौर, जोधपुर, सिरोही, पाली, सीकर, नागौर एवं झंझुनू में पायी जाती है।
👉लाल व पीली मिट्टी राजस्थान में अजमेर, उदयपुर, भीलवाडा, सिरोही में पायी जाती है।
👉लाल लोमी मिट्टी राजस्थान में डूंगरपुर, उदयपुर, बांसवाडा, भीलवाडा व चित्तौडगढ़ में पायी जाती है।
👉 काली मिट्टी राजस्थान में कोटा, बूंदी, झालावाड़ में पायी जाती है।
👉जलोढ़ मिट्टी या कछारी राजस्थान में भरतपुर, जयपुर, टोंक, एवं सवाई माधोपुर जिले में पायी जाती है।
👉भूरी , रेतीली, कछारी मिट्टी गंगानगर, अलवर जिला में पायी जाती है।
👉 लैटेराइट मिट्टी प्रतापगढ़, कुशलगढ़, बांसवाडा में पायी जाती है।

मृदाओं को 8 समुहो में बांटा गया है। जिनमें 4 प्रमुख समुह निम्न प्रकार है।

1.जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil )

👉 यह मृदा समुह मुख्यतः एन्टीसॉल (Enti sol) मृदा गण से निर्मित है।
👉भारत में सबसे अधिक क्षेत्रफल :143 mha) पर जलोढ़ मृदा (Aluvai soil) ही पाया जाता है।
👉यह मृदा समुह प्रमुखतया UP, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान एवं पश्चिम गुजरात में पायी जाती है।
👉 इस मृदा में संस्तर (Horizons) नहीं पाये जाते है।
👉यह मृदा नदियों धाराओं के द्वारा बहा कर बाढ़ वाले मैदानी क्षेत्रों में जमा की हुई है।
👉यह मृदा दो प्रकार की होती है।
     A. खादर (Khadar) -यह अधिक बलुई होती है तथा नवीनतम निर्मित जलोढ़ मृदा है।
     B.बांगर (Banger) - ये पुरानी जलोढ़ मृदा है तथा इनमें मृत्तिका (Clay) मृदा की मात्रा अधिक पायी जाती है।

2.काली मृदा (Black soil)

👉 यह वर्टीसॉल (Verti sol) मृदागण (Soil order) द्वारा निर्मित है।
👉 इस प्रकार की मृदाएं मोन्टामोरिलोनाइट (Montomorillonite) क्ले खनिज (Clay minerals) द्वारा निर्मित है।
👉भारत में सबसे ज्यादा काली मृदा-महाराष्ट्र में एवं उसके बाद मध्यप्रदेश में पायी जाती है।
👉 काली मृदा कपास की खेती के लिए उपयुक्त होने के कारण इसे काली कपास मृदा (Black Cotton Soil) भी कहते हैं।
👉यह गहरी काली महीन मृतिका द्वारा निर्मित दानेदार मदा है।
👉यह भारत में जलोढ़ मृदा के बाद सबसे ज्यादा क्षेत्रफल पर पायी जाती है।
👉इस मृदा की जल धारण क्षमता सबसे अधिक होती है।

3. लाल मृदाएं (Rad soil)-

👉इन मृदाओं की उत्पत्ति प्राचीन क्रिस्टलीय सेल जैसे - ग्रेनाईट व बालू पत्थर आदि के टूटने से हुई है।
👉इनका निर्माण एल्फीसॉल्स (Alfi soil) मृदा गण द्वारा होता है।
👉यह भारत में लगभग 15 मि.हैक्ट, क्षेत्रफल (2,/3 भाग) में फैली हुई है।
👉यह अम्लीय प्रवृति की होती है।
👉इन मृदाओं में फॉस्फोरस स्थिरीकरण (P-Fixation) की क्षमता अधिक पाई जाती है |
👉इस प्रकार की मृदाए के ओलिनाइट (Kaolinite) खनिज तत्व द्वारा निर्मित है।
👉इनका लाल रंग लौह एवं मैगनीज तत्व की अधिकता के कारण होता है।
👉इन मृदाओं को अगेती मृदा (Early soil) भी कहते है क्योंकि दक्षिण पश्चिमी मानसून की थोड़ी बहुत वर्षा होने पर इन मृदाओं में अन्य मृदाओं की अपेक्षा जल्दी बुआई की जाती है।

4. लेटेराइट मृदाएं (Laterite soil)

👉इनका निर्माण अल्टीसॉल्सस एंव ऑक्सीसॉल्स मृदा समुहों (Soil orders) से हुआ है |
👉ये मृदाएं लगभग 15 मीटर हैक्टेयर क्षेत्रफल में विस्तृत है।
👉ये मृदाएं मुख्यत: केरल, कर्नाटक, उडिसा, असम की पहाड़ियों एवं गोवा व महाराष्ट्र के समुद्री किनारों पर पायी जाती है।

5. दोमट मृदा (Loamy soil)

👉साधरणत: काली (क्ले) मृदाओं को भारी मृदा कहते हैं।
👉क्योंकि इनमें भू-परिष्करण की क्रियाएं (Tillage operation) करने में ज्यादा बल लगाना पड़ता है।
👉इस प्रकार की मृदाएं कपास, धान व ज्वार के लिए उपयुक्त है।

6. भारी मृदाएं (Heavy soil)

👉साधारणत: काली (क्ले) मृदाओं को भारी मृदा कहते हैं।
👉क्योंकि इनमें भू-परिष्करण की क्रियाएं (Tillage operation) करने में ज्यादा बल लगाना पड़ता है।
👉इस प्रकार की मृदाएं कपास, धान व ज्वार के लिए उपयुक्त है।

7. हल्की मृदाएं (Light soil)

👉इस प्रकार की (बालु) मृदाओं में कृषि उपकरण आसानी से चला सकते है।
👉अर्थात भू-परिष्करण की क्रियाएं करने में काली मृदा की अपेक्षा कम जोर (बल) लगाना पड़ता है। इसलिए इस प्रकार की मृदाओं को हल्की मृदाएं कहते है जैसे-बालू, रेतीली, दोमट मृदा।

पलवार (Mulching)

छादन कृषि (Mulching) - मृदा सतह पर प्राकृतिक या कृत्रिम ढंग से डाला गया पादप अवशेष या अन्य पदार्थ के नाम से जाने जाते है।
👉फसल अवशेष, पत्तियां, खाद, घास भूसा, तना डंठल एवं प्लास्टिक फिल्म छादन कृषि में उपयोग होने वाले पदार्थ है।
👉भू क्षणण रोकने के लिए उपयोग में लायी जाने वाली छाद पांच प्रकार की होती है।
👉भारी / काली मिट्टियों में मृदा छाद उपयोगी होती है।
👉मृदा की ऊपरी सतह की हल्की कोडाई मृदा छाद होती है।
👉डण्ठल छाद फसलों के तने, डण्ठल एवं अन्य भाग जो खेतों में छोड दिये जाते है।
👉पंजाब तथा हरियाणा भारत में डण्ठल छाद की जाती है।
👉 स्ट्रा छाद (Stra Mulch)-जब मल्च के रूप में घास, पात, भूसा का प्रयोग लिया जाता है तो इसे स्ट्रा छाद कहते हैं।
👉 प्लास्टिक छाद (Plastic Mulch)-जब प्लास्टिक पदार्थ, पोलिथिन, पोलीविनाईल क्लोराइड जैसे पदार्थों का प्रयोग मल्च के रूप में किया जाता है तो इसे प्लास्टिक छाद कहते है।
👉 उदग्र छाद (Vertical Mulch)- कली मिट्टी में अंत स्पंदन को बढ़ाने एवं वर्षा जल को एकत्रित करने के लिए सब सायलिंग के कारण बने गढ़ढ़ों में कार्बनिक पदार्थों (वृक्षों का कट्टा, छट्‌टा) अवशेष भर दिया जाता है जिसे उदग्र छाद कहते है।
👉 पट्टी शस्यन (Strip Cropping)-दो या दो से अधिक फसलों को भूमि ढलान या वायु दिशा के समकोण में एक साथ बोया जाता है।
👉 उचित शस्यावर्तक- मृदा के ढलान के अनुसार फसलों का चयन किया जाता है।
👉16 से 33 प्रतिशत ढलानयुक्त क्षेत्रों में सीढीनुमा खेती का प्रयोग किया जाता है।
👉 3 से 10 प्रतिशत ढलान युक्त क्षेत्रों में जिंग खेती का प्रयोग किया जाता है।
👉क्षारीय या सोलिंग मृदाओं को सुधारने के लिए जिप्सम ऑयर पाईराइट का प्रयोग करना चाहिये।
👉भारत क्षारीय मृदाएँ उत्तर प्रदेश,पंजाब,हरियाणा में पायी जाती है।
👉ऐसी मृदा जिसका pH 7.5 से कम हो अपघटित क्षारीय मृदा कहलाती है और इन मृदाओं को लाइम स्टोन (CaCO3) के द्वारा सुधारा जाता है।

फसलों की लवणता रोधी किसमें :-
  • 1. गेहूँ-- के-65, आर.एल.-19, कल्याण सोना, लोकवान-1
  • 2. जौ-- बी.एल.-2, आर.डी.-103
  • 3. तरबूज- शूगर बेबी, दुर्गापुरा

मृदा (Soil)

👉 IISS-India Institute of Soil Science,Bhopal (MP) में है।
👉एक प्रसिद्ध मृदा वैज्ञानिक रायबहादुर विश्वनाथ हैं।
👉“मृदा” शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द 'सोलम' से हुई।
👉 'सोलम' शब्द का अर्थ फर्श (Floor) होता है।
👉मृदा- मृदा वह प्राकृतिक पिण्ड है जो विच्छेदित एवं अपक्षयित खनिज पदार्थों तथा कार्बनिक पदार्थों के सडने से बने विभिन्‍न पदार्थो के परिवर्तनशील मिश्रण के प्रोफाइल के रूप में ढकती है तथा जल एवं वायु की उपयुक्त मात्रा के मिलाने पर पौधों को यांत्रिक आधार तथा आंशिक जीविका प्रदान करती है।
👉 मृदाशास्त्र (Edaphology) -मृदा विज्ञान की वह शाखा, जिसमें मृदा का अध्ययन उच्च पादप समुदाय के दृष्टिकोण से किया जाता है।
👉 पैडोलोजी- ग्रीक भाषा शब्द है| पैडोलोजी शब्द सर्वप्रथम वी.वी. डोकोविच ने दिया इसलिए इस वैज्ञानिक को मृदा विज्ञान का पितामह कहा जाता है।
👉 मृदा विज्ञान की वह शाखा, जिसमें मृदा को शुद्ध रूप से एक प्राकृतिक पिण्ड माना जाता है तथा मृदा की प्रोयोगिक उपयोगिता का कोई ध्यान नहीं रखा जाता है। जिसमें मृदा के जन्म, निर्माण तथा वितरण का अध्ययन होता है।
👉मृदा विज्ञान में मृदा उत्पादकता के रहस्यों की कुंजी को पैडोलोजी कहा जाता है।
👉मृदा का जन्म पैतृक पदार्थों तथा चट्टानों से होता है।
👉मृदा एक कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थों का पिण्ड बना होता है।
👉मृदा की ऊपरी परत जिसमें कृषि करते समय औजार तथा मशीनरी आदि का उपयोग किया जाता है उसे पृष्ठ मृदा कहते है।
👉मृदा की परत का नाम ऊपरी सतह से नीचे की परत जो पैतृक पदार्थ तक गहरी होती है उसे अवमृदा कहा जाता है।
👉मृदा पृष्ठ 9 इंच गहरी होती है ।
👉पृष्ठ मृदा में रासायनिक एवं जैविक क्रियायें होती है।
👉अवमृदा की गहराई होती है कुछ इंच से लेकर सैकड़ों फीट तक।
👉अवमृदा ब +स संस्तर तथा अ का निम्न भाग होती है।
👉अवमृदा पृष्ठ मृदा की अपेक्षा हल्की तथा उपजाऊ होती है।
👉पृष्ठ मृदा सबसे अधिक गतिशील मृदा होती है।
👉मृदा से पौधों को P,K,Ca,Fa,B,Mg,Cu,Zn,Mo व Cl तत्व प्राप्त होते हैं।
👉मृदा तथा हवा दोनों से पोधो को नाईट्रोजन प्राप्त होती है।
👉वायु एवं. जल से C, H एवं O पौधो को प्राप्त होती है।
👉मृदा से पौधों की जड़ों के श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त होती है।
👉बलुई मृदा में सबसे अधिक ऑक्सीजन की मात्रा पायी जाती है।

मृदा में वायु का संगठन-

👉मृदा में खनिज (45%), जल (25%), वायु (25%) तथा कार्बनिक पदार्थ (5%) वायु शुष्क ठोस प्रावस्था में खनिज पदार्थो की मात्रा होती है।
👉78 प्रतिशत नाइट्रोजन, 20.3 प्रतिशत ऑक्सीजन, 0.25 प्रतिशत CO2 , मृदा में पाई जाती है।
👉एक घनफुट मृदा में 77 पौण्ड खनिज पदार्थ, 16 पौण्ड जल, 3 पौण्ड जीवांश एवं 4 पौण्ड वायु पाये जाते है।
👉मृदा के महिन अंश में द्वितीयक खनिज पदार्थों की प्रधानता होती है।
👉मृदा के खनिज पदार्थो में सिलिका पदार्थ सबसे ज्यादा पाया जाता है।
मृदा के खनिज पदार्थों में सिलिका, एल्युमिनियम, आयरन एवं ऑक्सीजन 90 प्रतिशत होता है।
👉अधिकांश मृदाओं में भार की दृष्टि से कार्बनिक पदार्थों की मात्रा1 -6% होती है।
👉पौधों एवं पशुओं के अवशेष से मृदा में कार्बनिक पदार्थ प्राप्त होते है।
👉मृदा विच्छेदन के अधिक प्रतिरोधी एवं जिलेहनी उत्पाद जो कि सूक्ष्म जीवों द्वारा संश्लेषित होते है तथा मूल उतकों के रूपान्तरित होने से बनते है वह मृदा हृूमस कहलाते है।
👉हृूमस का रंग काला या बदामी होता है।
👉स्वभाव से हृूमस कोलायडी होती है।
👉साघारणत: मृदा में CO2 की मात्रा गहराई बढ़ने के साथ-साथ बढती है।

मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile)

👉मृदा में ऑक्सीजन की मात्रा पर गहराई बढ़ने पर घटती जाती है।
👉मृदा को उदग्र रूप से काटने पर जो जननिक रूप से संबंधित अनेकों संस्तर दिखाई पड़ते है इन संस्तरों की इकाई को मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile) कहते है।


👉मृदा में विभिन्‍न परते जो स्पष्ट रूप से दिखाई देती है या जिन्हें विश्लेषण के द्वारा पहचाना जा सकता है उसे संस्तर कहते है।
1. O संस्तर - कार्बनिक संस्तर होते है जो खनिज मृदा की ऊपरी सतह बनाते है ये प्राय: जंगल की मृदाओं में पाये जाते है। O संस्तर कार्बनिक संस्तर में पादप एवं जन्तुओं की मूल अवस्था नंगी आखों से पहचानी जा सकती है।
2. A संस्तर - खनिज संस्तर होते है जो पृष्ठ पर या पृष्ठ के समीप स्थित होते है इसे निक्षालन संस्तर (Eluvial Horizon) भी कहते है। इस संस्तर में लीचिंग अधिकतम होता है। A संस्तर - इस संस्तर में सबसे अधिक लीचिंग होती है तथा यह विरेजन के कारण हल्के रंग के खनिजों से युक्त होता है। इस संस्तर के मूल अवयव लीचिंग द्वारा नष्ट हो जाती है। अपरिवर्तनीय संस्तर है।
3. B संस्तर- यह संस्तर संचयन संस्तर है जिसमें “अ' संस्तर में उपस्थित पदार्थ जैसे हूमस (Al2O3FeO4) लीचिंग द्वारा संचित हो जाते है। इसे निक्षेपण संस्तर (Illuvation horizon ) भी कहते है। प्रायः यह अवमृदा (5५७ 5०) या अद्योमृदा संस्तर कहलाता है।
👉इस संस्तर में कृषि क्रियाऐं सम्भव नहीं है।
👉'B2' संस्तर-यह संचयन संस्तर है। SiO2,Al2O3 के यौगिक होते है।
👉“B3” संस्तर यह परिवर्तनीय संस्तर है।
4. C संस्तर - यह मूल पदार्थ का संस्तर है, इसका रंग भूरा या बादामी होता है इसे मूल संस्तर भी कहते है। इसमें Fe2O4,Al2O3 के एकत्रित हो जाने से अत्यन्त कठोर परत बन जाती है। इसलिए इस संस्तर में लीचिंग नहीं होती है।
👉 यह संस्तर सोलम परत (A+B संस्तर) के नीचे पाया जाता है।

मृदा संरचना (Soil Structure)

👉 मृदा कणों के व्यवस्थापन को मृदा संरचना कहते हैं। मृदा संरचना चार प्रकार की होती है।


1. गोलाकार संरचना (Spherical Structure) - इस संरचना में कण समूह (पेड्स)[का आकार गोलाकार होता है और कण समूह के फलक वक्रीत, अनियमित होता है अर्थात दानेदार होता है और सभी अक्ष की लम्बाई लगभग समान होती है।
👉गोलाकार संरचनाओं को दो भागों में विभाजित किया जाता है
(a) कणीय संरचना (Granular Structure) - इनके कण समूह कम रंध्रीय होते हैं और यह संरचना अनेक प्राथमिक कणों से बनती है। जिन मृदाओं में अधिक जिवाश्म प्रदार्थ होते हैं उनमें यह संरचना पाई जाती है और यह संरचना खेती की दृष्टि से सबसे अच्छी मानी जाती है। इस संरचना में कणपुंज का आकार 1 से 40 मिमी. होता है।
(b) मृदुकर्णीय संरचना (Crumby Structure) - इस संरचना में कणपुंज अधिक रंध्र होने के कारण यह सरलता से टूट जाते हैं। इस संरचना में कण पुंज का आकार 1 से 5 मिमी. होता है।

2. खण्ड सदृश्य संरचना (Blocky Structure) - इस संरचना में कण घनाकार (नटनुमा) होते हैं अर्थात कण पुंजो की लम्बाई, चौडाई, मोटाई तीनो अक्ष समान होते हैं।
👉यह संरचना B संस्तर में पाई जाती है।
👉इस संरचना को कणों की संरचना के आधार पर दो भागों में विभाजित किया गया है।
(a) कोणित खण्डीय संरचना (Angular Blocky Structure) - इस संरचना में कण पुंज के फलक चपटे, कोण व भुजाऐं समुचित विकसित एवं तेज कोणीय होते हैं और कण पुंजीयों का आकार 5 से 50 मिमी. तक होता है।
(b) उपकोणित खण्डीय संरचना (Sub Angular Blocky Structure) - इस संरचना में कोण व भुजाऐँ टूट फूट कर घीस जाती है और कण पुंज मिश्रित गोलाकार रूप में आ जाते हैं इस प्रकार की संरचना का विकास अवमृदा में पौधों की जडों के प्रवेश मृदा वायु एवं जन विकास पर निर्भर करता है।

3. प्रिज्जीय संरचना (Prismatic Structure) - इस संरचना में कण पुंजो का ऊर्ध्वाधर क्षैतीज अक्ष की अपेक्षा बडा होता है। जब इस प्रकार के कण समूहों का शीर्ष तथा किनारे गोलाकार होते हैं तो उसे स्तम्भाकार/ स्तम्भीय (Columnar) संरचना हैं तथा जब सिरा (कोण) समतल एवं सपाट होता है तो उसे प्रिज्मीय संरचना कहते हैं। यह संरचना शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों की मृदाओं की B सस्तरों में पाई जाती इस संरचना में कण पुंजो का आकार 1 से 10 मिमी. होता है।

4. प्लेटी संरचना (Platy Structure) - इस प्रकार की संरचना में कण पुंजों का अक्ष उर्ध्वाधर अक्ष की अपेक्षा बडा होता है। इस संरचना में कण पुंज चपटे, दबे
हुए लेन्स के समान दिखाई देते हैं और यह संरचना साधारणतया नम मृदाओं के O संस्तर में पाई जाती है|
👉कण पुंजों की मोटाई के आधार पर इस संरचना को दो भागों में बांटा गया है।
(a) स्तरीय संरचना (Laminar Structure) - इस संरचना के कण पुंज की मोटाई 1 से 2 मिमी. तक होती है और यह पतली, चिपकी हुई होती है।
(b) प्लेटी संरचना (Platy Structure) - इस संरचना में कण पुंज की मोटाई 2 से 10 तक होती है।

मृदा कणाकार (Soil Texture) -

👉मृदा कणों के आकार या विभिन्‍न मृदा कणों के अनुपात (मिश्रण) को मृदा कणाकार (Soil Texture) कहते हैं।
👉यह मृदा की मूल अवस्था है इसे बदला नहीं जा सकता।
👉भौतिक एवं रासायनिक दृष्टि से मृदा में सबसे अधिक मृत्तिका (क्ले) के कण होते है।
👉मृदा में खनिज पदार्थों को उनके कणों के आधार पर चार भागों में बांटा गया है।
     1 . कंकड़ -- 2 मिमी से अधिक बड़े
     2. बालू -- 2.02 से 0.02 मिमी के बीच
     3. दोमट सिल्ट-- 0.02 से 0.002 मिमी के बीच
     4. मृतिका क्ले -- 0.002 मिमी से कम
आपेक्षित घनत्व (Specific Gravity) - किसी वस्तु के कुल आयतन की संहती तथा समान आयतन वाले जल की संहती के अनुपात को अपेक्षित घनत्व कहते है।
मृदा घनत्व (Density of Soil)- किसी पदार्थ के एक इकाई आयतन की संहती को उस पदार्थ का घनत्व कहते है।
👉मृदा घनत्व दो प्रकार की होती है - 
1. स्थूलता घनत्व (Bulk Density) -शुष्क मृदा के एक इकाई आयतन के भार को मृदा का स्थूलता घनत्व कहते है। इसे आभासीय घनत्व तथा आयतन घनत्व (Volume Weight) भी कहते है।
👉सामान्य स्थूल घनत्व कण घनत्व की आधी मात्रा होती है 1.3 ग्राम/ CC
👉स्थूलता घनत्व= ओवन में शुष्क मृदा का भार /ओवन में शुष्क मृदा का आयतन
2. कण घनत्व (Particle Density) -इसे वास्तविक आपेक्षित घनत्व व सापेक्ष घनत्व भी कहते है। मृदा के ठोस भाग के इकाई आयतन के भार को कण घनत्व कहते है।
👉मृदा में कार्मिक पदार्थ मिलाने पर कण घनत्व कम हो जाता है। इसीलिए काली मृदा का कण घनत्व कम होता है।
👉विभिन्‍न मृदाओं का कण घनत्व 2.5 - 2.7 ग्राम प्रति घन सेमी (2.65 ग्राम / से.मी.3 or cc होता है।
👉बालु मृदा का कण घनत्व ज्यादा होता है क्‍योंकि इसमें मृदा कणाकार ज्यादा मात्रा में होता है।
👉सूत्र- कणों का वजन,/कणों का आयतन
👉मृदा के कण घनत्व को प्रभावित करने वाला मुख्य कारक - कार्बनिक पदार्थ की मात्रा है।
👉 सरन्ध्रता (Porosity) मृदा आयतन के भीतर ठोस पदार्थों से रहित जो रिक्त स्थान होता है उसे मृदा रन्ध्र कहते है तथा मृदा के कुल आयतन का वह प्रतिशत भाग जो रिक्त होता है वह मृदा सरन्धता कहलाता है।
👉प्रतिशत रन्ध्रावकाश %= 100 (स्थूलता घनत्व/कण घनत्व) x 100 Porosity% {1-BD/PD }x 100
👉साधारणतः मृदा की कुल सरन्ध्रता 50% होती है।
👉 मृदा गाढ़ता (Soil consistence) विभिन्‍न आर्द्रताओं में मृदा पदार्थों के (cohesion) संसजन तथा आसंजन (Adhesion) की मात्रा तथा प्रकार अथवा मृदा पदार्थ को विघटित एवं विरूपित करने की ओर लगे बलों की प्रतिरोधित को मृदा गाढ़ता कहते है।
👉 मृदा अभिक्रिया (soil reaction) मृदा अभिक्रिया का तात्पर्य घोल की अम्लीयता (Acidity) क्षारीयता (Alkalinity ) तथा उदासीनता (Neutrality) से है।
👉H+ आयन अधिक होना अम्लीय मृदा कहा जाता है।
👉OH- आयन अधिक होना क्षारीय मृदा कहलाता है।
👉H+ एवं OH- = बराबर होना उदासीन (Neutral) मृदा कहलाता है।
👉पी.एच.मान (pH Value) - सोरेनसेन ने 1909 ई. में हाइड्रोजन आयन सांध्रता को प्रदर्शित करने के लिए एक आसान एवं उपयुक्त तरीके का प्रतिपादन किया जिसे pH मान कहते है।
👉किसी घोल की पी.एच. उसकी हाइड्रोजन आयन सांध्रता के ऋणात्मक लघुगणक के समान होती है। अथवा किसी घोल की पी.एच. उसके हाइड्रोजन आयनो की सांध्रता के व्युत्कम का लघुगणक होती है उसे pH = -log (H+)-1 =log 1 /{H+}
👉 शुद्ध जल या किसी उदासीन घोल में हाइड्रोजन आयन सान्ध्रता कितनी होती है-1 x 107 ग्राम आयन प्रति लीटर अथवा pH =7 होता है।
👉किसी विलयन की पी एच 7 से कम होने पर अम्लीय कहलाता है।
👉किसी विलयन की पी एच 7 से अधिक होने पर क्षारीय कहलाता है।
👉pH में 1 का अन्तर होने से H+ सान्ध्रता में 10 गुना अन्तर आ जाता है।
👉न्यूनता का नियम (Law of minimum) - वॉन लीबिग (1840)- किसी एक आवश्यक मृदा अवयव की कमी होने से अन्य सभी अवयवों की उपस्थिति होने पर भी मृदा वैसे पौधों के लिए अनुर्वर (Barren) हो जाती है जिनके लिए यह आवश्यक होता है।

मृदा जल (Soil water)

👉 मृदा जल तनाव (Soil water tension) 31 से 10000 वायुमण्डलीय दाब तक होता है।

1. आद्रताग्राही जल (Hygroscopic water) - आद्रताग्राही गुणांक (Hygroscopic coefficient) से लगा होता है।
👉यह जल मृदा में सबसे अधिक बल (31atm ) या अधिकतर संग्रहित रहता है ।
👉मृदा में इस जल की मात्रा न्यूनतम होती है।
👉यह जल पतली झिल्ली के रूप में मृदा कणों से आसन्जन बल द्वारा बना रहता है तथा पौधों को उपलब्ध नहीं होता है।
2. केशिका जल / सुलभ जल (Capillary water) - यह जल मृदा के केशिकाओं (capillaries ) में रहता है।
👉मुक्त जल (Free water) अथवा निकास जल (Drainage water) गुरुत्व जल होता है।
👉केशिका जल उपस्थिति सूक्ष्म रन्ध्र (micro pores)में क्षेत्र क्षमता (Field capacity) तथा आर्द्रता ग्राही गुणांक के बीच में होता है।
👉यह जल मृदा कणों के चारों ओर आसंजन बल के साथ दृढ़ता से ज़ुड़ा रहता है अर्थात यह जल पौधों को उपलब्ध नहीं होता है।
👉वृहत रन्ध्रों (Macro pores) गुरूत्व जल उपस्थित होता है।
👉यह जल पौधों की जड़ों को आसानी से उपलब्ध होता है।
👉केशिका जल में वायुमण्डलीय दाब 1/3 atm से 31 atm तक होता है।
👉कोशिका जल का pH 6.0 - 4.2 होता है।
3. गुरूत्व जल (Gravitational water) - ऐसा जल 0.3 atm या इससे कम के ऋणात्मक तनाव पर उपस्थित होता है।
👉अतिरिक्त जल (Super flush Water) - का तनाव 1/3 atm के बराबर या कम होता है।
4. उपलब्ध जल या प्राप्य जल (Available Water) - केशिका जल का वह भाग जो क्षेत्र क्षमता (Field Capacity) तथा म्लानि गुणांक या मुुझान गुणांक (Wilting Coefficient) के बीच उपस्थित होता है। यह जल 1/3-15 atm के बीच होता है।
👉एक बार या इससे कम (<1 bar) पौधों की अनुकूल वृद्धि के लिए मृदा तनाव होना चाहिए।
👉उपलब्ध जल का PH-2.54-4.2 होता है।
5. जल धारण क्षमता (Water Holding Capacity) - मृदा में उपस्थित कुल जल की वह मात्रा जो मृदा कणों द्वारा धारण की जा सके जल धारण क्षमता कहलाती है।
6. म्लानी प्रतिशत - यह दो प्रकार का होता है- स्थाई एवं अस्थाई
👉स्थायी म्लानि प्रतिशत की धारणा देने वाले वैज्ञानिक ब्रीगस एवं शेन्टज थे।
👉म्लानि बिन्दु - आर्द्रता तुल्यांक होता है।
👉क्षेत्र क्षमता (Field Capacity) - सिंचाई के 36 से 48 घंटे बाद जो जल की मात्रा खेत में पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल के विरूद्ध धारण करके रहती है वह जल की क्षेत्र क्षमता कहलाती है।
👉हुमिक तत्व - मृदा में बनने वाले पदार्थ जिनका रंग पीला या भूरा से काला होता है। इसकी प्रकृति अम्लीय होती है।

खनिज -

👉प्रकृति में पाये जाने वाला अकार्बनिक पदार्थ है। जिसका भौतिक गुण व रासायनिक गुण संघटन निश्चित होता है।
खनिज दो प्रकार के होते हैं--
(।) प्राथमिक खनिज - इन खनिजों के कणों का आकार 0.002 मिमी. या 2 म्यू से अधिक होता है। ये चट्टानों के मूल अव्यव का निर्माण करते हैं। जैसे- क्वार्टज, आर्थोक्लेज,फेल्सपार, ऐफेटाइट, प्लेजियोक्लेव ।
(2) द्वितीयक खनिज - इन खनिजों के कणों का आकार 2 म्यू से कम होता है। यह खिनिज प्राथमिक खनिजों के विघटन अथवा विघटन के पुनः अवक्षेप के फलस्वरूप निर्मित हुए हैं। जैसे- हेमेटाइट, लाइमोनाइट, केल्साइट,डोलामाइट, जिप्सम, जीयोलाइट, मेग्नेटाइड व मृतिका खनिज ।


चट्टाने -खनिजों के पारस्परिक संयोग से बने मिश्रण को चट्टान कहते हैं।

चट्टानों के प्रकार -

1) आग्नेय चट्टाने (Igneous Rock) - थल मण्डल का 95 प्रतिशत भाग इन्हीं चट्टानों से बना है। अधिक ताप के कारण पिघले हुए लार्वा के ठोस रूप में जमा होने से इन चट्टानों का निर्माण होता है। यह सबसे पुरानी या मूल चट्टान है। अन्य चट्टनों का निर्माण इन्हीं चट्टानों से होता है। जैसे- ग्रेनाइट, बेसाल्ट, डायोराइट, सीयेनलाइट |
2) परतदार चट्टाने या अवसादी चट्टाने (Sedimentary Rock) - वायु, जल व बर्फ द्वारा प्राचीन चट्टानों के अपक्षय से प्राप्त सामग्री को एक स्थान पर ले जाकर एकत्रित करने पर परतदार चट्टानें बनती है। ये चट्टाने सदैव परत के रूप में मिलती है। परतदार चट्टानों में जीवाष्म पाये जाते हैं। जैसे- बालू पत्थर, मृतिका, जिप्सम, कोयला, खडिया, चूना, पत्थर, डोलामाईट, पीट।
3) कायान्तिरित चट्टाने या रूपान्तरित चट्टाने - यह आग्नेय एवं परतदार चट्टानों पर अत्यधिक ताप, दाब व जल आदि के प्रभाव से बनती है। यह चट्टाने अत्यधिक कठोर होती है। आग्नेय की भांति क्रिस्टलीय होती है। जैसे-

मूल चट्टान                           रूपान्तरित
बालू पत्थर                            क्वार्ट जाइट
संलेटी पत्थर,                        सेल सलेट
चूना पत्थर                             संगमरमर
ग्रेनाइट                                   नीस
माइका (अभ्रक)                     सिष्ट
पीट                                     कोयला


महत्वपूर्ण बिन्दु

👉इस तरह की मृदा में कैल्शियम, मैग्निशियम, कार्बोनेट जमा होतें है।
👉मृदा प्रोफाइल का गाढ़ापन मृदा कणों पर परस्पर संलग्नता बल पर निर्भर करता है।
👉कठोर चट्टानों से मृदाएं कम गहरी बनती है।
👉रेतीली मृदाओं में मृदा प्रोफाइल बहुत गहरे होते है।
👉अधिक वर्षा वाले स्थानों पर मृदा प्रोफाइल की गहराई अधिक होती है।
👉मरूस्थलीय एवं अंर्द्ध मरूस्थलीय स्थानों पर मृदा प्रोफाइल उथले होते है।
👉निक्षालन संस्तर (A) में कणाकार हल्का होता है।
👉निक्षेपण संस्तर (B) में कणाकार भारी होता है।
👉मृदा में पोषक तत्व प्रदान करने वाला भाग मृतिका (Clay) कहलाता है।
👉पौधो की वृद्धि के लिए O2का सान्ध्रण होना चाहिए।
👉मृदा में वायु के अभाव॑ में अथवा पानी भरा रहने के कारण ऑक्सीजन के अभाव में पौधों पर फफूंदजनित रोगों का प्रकोप (उखटा रोग प्रमुख) का प्रभाव पड़ता है।
👉धान की फसल ऑक्सीजन रहित मृदा में जीवित रहती है क्योंकि वायवीय ऊतक पाया जाता है।
👉प्रत्येक 10 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर रासायनिक क्रिया दर दुगुनी हो जाती है।
👉पृथ्वी के आसपास तथा पृथ्वी की-सतह वाले मण्डल को जिसमें प्राणी विद्यमान रहता है। उसे जैव मण्डल कहते है।
👉जीवों में जीवाश्म अवशेष कहलाते है।
👉मृदा के मूल पदार्थ को रिगोलिथ कहते है।
👉मृदा + परिच्छेदिका मृदा के संस्तरों के योग कहलाता है।
👉मृदा के ढांचे का निर्माण बालू + सिल्ट कण्णों से मिलकर होता है।
👉मृदा का मुख्य घटक सिल्ट या दोमट घटक से होता है।
👉सबसे अधिक जल धारण क्षमता वाली मृदा क्ले (मृतिका) में होती है।
👉खेती की दृष्टि से सबसे उपयुक्त दोमट मृदा होती है।
👉काली (मृतिका) मृदा धान, कपास एवं गन्ना फसलों के लिए उपयुक्त होती है।
👉बालू मृदा की औसत जल धारण क्षमता 50-60 प्रतिशत होती है।
👉सिल्ट मृदा की औसत जल धारण क्षमता 60-70 प्रतिशत होती है।
👉क्ले (क्ले मृतिका) मृदा की औसत जल धारण क्षमता 70-80 प्रतिशत होती है।
👉मृदु कोणीय संरचना खेती की दृष्टि से सर्वोत्तम मृदा संरचना मानी जाती है।
👉मृदा संरचना के द्वारा मृदा में वायु एवं जल के पारस्परिक संबंध का निमार्ण होता है।
👉मृदा संरचना को वायु जल प्रणाली कहा जाता है।
👉मृदा के अन्तःस्त्राव का निर्धारण मृदा संरचना द्वारा निर्धारण किया जाता है।
👉जीवों के उत्तरोतर विकास को वृद्धि कहा जाता है।
👉शुष्क भार + लम्बाई + व्यास पौधों के सर्द॑र्भ में वृद्धि होती है।
👉खरपतवारों से होने वांली हानि जीविय कारक से सम्बन्धित होती है।
👉अधिकांश फसलों के उपयुक्त तापमान 15 से 40 डिग्री सेल्सियस होता है।
👉प्रकाश पादप वृद्धि एवं विकास में महत्वपूर्ण कारक है।
👉मृदा सिस्टम में मृदा अवयवों की तीन (ठोस, द्रव तथा गैस) प्रावस्थाएं होती है।
👉50 प्रतिशत मृदा के आयतन में ठोस पदार्थ होते है।
👉25प्रति.जल + 25 प्रति. वायु (रन्ध्रवकाश) मृदा के आयतन में ठोस पदार्थ होते है।
👉फुलविक अम्ल-इसका आग्विक भार न्यूनतम होता है तथा अम्ल एवंक्षार दोनों में घुलनशील होता है।
👉हुमिक अम्ल-इसका आण्विक भार मध्यम होता है हुमिन अम्ल तथा क्षार दोनों में अघुलनशील होता है।
👉सूक्ष्म जीवों द्वारा सबसे कम विघटन हुंमिन अम्ल का होता है।
👉फलविक अम्ल का सूक्ष्म जीवों द्वारा सबसे अधिक विघटन होता है।
👉हुमस में लिग्नीन प्रतिशत-40-45% होता है।
👉हुमस में प्रोटीन प्रतिशत- 30-33% होता है। -
👉हुमस में प्रोटीन एवं लिग्नीन का कुल अंश 70-80% होता है।
👉हुमस अनुपात 10 :1 होता है।
👉यीस्ट में C :N अनुपात 400 : 1 होता हैं।
👉सामान्य मृदा का C :N अनुपात 12 :1
👉सूक्ष्म जीवों का C :N अनुपात 4 :1 से 9 :1
👉गोबंर की खाद का C :N अनुपात 20:1
👉दलहनी फसल का C :N अनुपात 20:1
👉अधिकतर भारतीय मृदाओं का C :N अनुपात 14 :1 होता है।
👉हुमस में सूक्ष कोलायड C, N, H,O के बने होते है।
👉हुमस में ऋणावेशित आवेश का स्त्रोत (-COOH) या फेनॉलिक वर्ग (C6H5OH) होता है।
👉हुमस का ऋणावेश pH पर निर्भर करता है।
👉हुमस का CEC 150-300 C mol/kg soil होता है।
👉भारतीय मृदाओं में कार्बनिक पदार्थों की औसत मात्रा 0.5% होती है।
👉कार्बनिक पदार्थों में C :O:Mअनुपात 1:1:724 होता है।
👉बेमलेन फेक्टर - का. मान 1.724 होता है।
👉सेलुलोज के विघटन प्रक्रिया का आरम्भ फंजाई द्वारा होता है।
👉लकड़ी का विघटन एक्टीनोमाइसटीस के द्वारा होता है।
👉मक मृदा कार्बनिक पदार्थ पूर्ण रूपेण विघटित होता है।
👉पीट मृदा- कार्बनिक पदार्थ अंशत:-विघटित होता है।
👉पीट मृदा अम्लीय (PH-3.9 या कम) होती है।
👉पीट मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा 10-40% होती है।
👉पीट मृदा धान की खेती के लिए उपयुक्त होती .है।
👉मृदा में पौधों के लिए पोषक तत्व का स्त्रोत कार्बनिक पदार्थ का होता है।
👉मिट्टी को 95% नाइट्रोजन एवं 33% फास्फोरस कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त होता है।

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