पशुपालन में पशुओं में प्रजनन प्रबंधन, प्रजनन पद्वतियाँ, नर पशुओं में बधियाकरण और नसबंदीकरण की महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। जिनसे पशुपालन में पशुओं के प्रजनन में प्रबंधन, विधियाँ, पद्वतियाँ, बधियाकरण और नसबंदीकरण आदि का उपयोग कर अच्छी नस्ले प्राप्त करने में या अध्ययन करने में महत्वपूर्ण सहायक हैं।
➤ गाय के जनन अंग में अण्डे के जीवित रहने की अवधि - 120 घंटे
➤ गाय के जनन अंग में शुक्राणु की जीवन अवधि - 24 से 30 घंटे
➤ गाय के जनन अंग में शुक्राणु की विकास अवध - 6 घंटे
➤ यदि मादा गर्भाधान के 19 से 21 दिन पश्चात् वापस मद में नहीं आती है, तब गर्भ ठहरने की संभावना बनती है।
➤ पशुओं में गर्भाधारण की जांच रेक्टम पालपेशन विधि द्वारा गर्भाधारण के 60 दिन पश्चात करते है।
➤ गाय ब्याने के 60 से 90 दिन के भीतर ही गर्भाधारण कर लेती है।
➤ नर पशु का मुख्य प्रजनन अंग - वृषण
➤ नर पशु का मुख्य प्रजनन हार्मोन - टेस्टेस्टेरोन
➤ मादा पशु का मुख्य प्रजनन अंग - अण्डाशय / डिम्ब ग्रंथियां
➤ मादा पशु का मुख्य प्रजनन हार्मोन - प्रोजेस्टेरॉन व एस्ट्रोजन
➤ भ्रूण का विकास गर्भाशय / यूट्रस में होता है।
➤ 'प्रसव के पश्चात 6-8 घंटे के अंदर जेर / प्लेंसेटा गिर जानी चाहिए।
पशुओं में प्रजनन प्रबंधन | Animal Breeding Management
पशुओं में प्रजनन की दो विधियां है, प्राकृतिक व कृत्रिम योनि विधि।
1. प्राकृतिक विधि :- नर व मादा आपस में समागम (Sexual contact) करके नए जीव को उत्पन्न करते है।
➤ इस विधि में एक वर्ष में एक सांड द्वारा 80-100 मादा पशुओं को प्रजनित करवाया जा सकता है।
2. कृत्रिम योनि विधि (Artificial Insemination) :- मादा पशु के हीट में आने पर विशेष प्रकार की पिचकारी के द्वारा वीर्य को मादा की जननेन्द्रियों में छोड़ा जाता है।
➤ इस विधि में एक नर पशु द्वारा एक वर्ष में 1000-2000 गायों को प्रजनित कराया जा सकता हैं।
➤ सन् 1322 - अरब के एक सरदार द्वारा घोङी पर किया था।
➤ इस विधि में एक वर्ष में एक सांड द्वारा 80-100 मादा पशुओं को प्रजनित करवाया जा सकता है।
2. कृत्रिम योनि विधि (Artificial Insemination) :- मादा पशु के हीट में आने पर विशेष प्रकार की पिचकारी के द्वारा वीर्य को मादा की जननेन्द्रियों में छोड़ा जाता है।
➤ इस विधि में एक नर पशु द्वारा एक वर्ष में 1000-2000 गायों को प्रजनित कराया जा सकता हैं।
➤ सन् 1322 - अरब के एक सरदार द्वारा घोङी पर किया था।
➤ विश्व में सर्वप्रथम 1780 में स्पेलेन्जी वैज्ञानिक ने इटली में कुतिया पर किया था।
➤ भारत वर्ष में सर्वप्रथम कृत्रिम गर्भाधान डेरी फार्म मैसूर, कर्नाटक (1939 ) में डॉ सम्पत कुमारन के द्वारा किया गया था।
➤ 1943 में इलाहबाद में भैंस के बच्चा (प्रथम) पैदा हुआ था।
➤ भारत वर्ष में सर्वप्रथम कृत्रिम गर्भाधान डेरी फार्म मैसूर, कर्नाटक (1939 ) में डॉ सम्पत कुमारन के द्वारा किया गया था।
➤ 1943 में इलाहबाद में भैंस के बच्चा (प्रथम) पैदा हुआ था।
➤ कृत्रिम प्रजनन प्रक्रिया के निम्न चरण हैं।
[1] वीर्य एकत्रित करना :- कृत्रिम योनि में किया जाता है।
➤ कृत्रिम योनि का तापक्रम भैंस में 39 °C तथा गाय में 41°C रखा जाता है।
➤ कृत्रिम योनि को 45 कोण पर रखकर वीर्य संग्रहण किया जाता हैं।
➤ वीर्य निस्तारण क्षमता - सांड - 8 मिली., मेढ़ा या बकरा - 1 मिली., सूअर - 250 मिली., घोड़ा - 70 मिली., मानव – 3.5 मिली., कुत्ता 12 मिली.
[1] वीर्य एकत्रित करना :- कृत्रिम योनि में किया जाता है।
➤ कृत्रिम योनि का तापक्रम भैंस में 39 °C तथा गाय में 41°C रखा जाता है।
➤ कृत्रिम योनि को 45 कोण पर रखकर वीर्य संग्रहण किया जाता हैं।
➤ वीर्य निस्तारण क्षमता - सांड - 8 मिली., मेढ़ा या बकरा - 1 मिली., सूअर - 250 मिली., घोड़ा - 70 मिली., मानव – 3.5 मिली., कुत्ता 12 मिली.
[2] वीर्य परीक्षण :-
(i) BBC Test (Bromothyle Blue Cestalese ) :- इससे वीर्य का pH एवं शुद्धता का परीक्षण करते है।
➤ वीर्य का pH - 6.7 एवं आपेक्षिक घनत्व - 1.035
➤ भैंस के नर के वीर्य का pH - 7.4
➤ वीर्य का पीला रंग - राइबोफ्लेविन
➤ वीर्य में गंध का कारण - एमिन्स (वर्षण में निर्मित)
➤ सर्वाधिक गुणवत्तायुक्त वीर्य का रंग - गाढा क्रीमी
(ii) MBR Test (Methyle Blue Reductase ):- वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या एवं गतिशीलता का परीक्षण करते है।
➤ शुक्राणुओं की गतिशीलता 40 प्रतिशत होना आवश्यक होती है।
[3] वीर्य का तनुकरण :- Egg Yolk Citrate एवं साइट्रिक अम्ल का उपयोग तनुकरण हेतु किया जाता है।
[4] वीर्य का भण्डारण :-
1. कमरे के तापमान पर :- गर्मी में 4-6 घंटे, सर्दी में - 10-12 घंटे
2. 4°C तापमान पर :- 3–4 दिन तक
3. -196°C तापमान पर :- इसमें तरल / द्रव N2 के अंदर भण्डारित किया जाता है।
➤ भण्डारण के लिए क्रायोकेनजार यंत्र का उपयोग करते है।
➤ 10-15 साल तक भण्डारित कर सकते हैं
4. जमे हुए वीर्य को अनन्त काल तक भण्डारित कर सकते हैं
[5] वीर्य का सेंचन :- वीर्य की मात्रा 0.5 से 2 ml.
➤ रेक्टोवेजाइनल विधि - गाय व भैंस में प्रयोग की जाती है।
➤ वेजाइनल स्पेकुलम विधि – भेड़ व बकरी में प्रयोग की जाती है।
1. अन्तः प्रजनन (In Breeding): - प्रजनन की इस विधि में 4-6 पीढ़ी तक सम्बन्धित नर एंव मादा पशुओं के बीच कराया गया प्रजनन अन्तः प्रजनन कहलाता है।
➤ समान गुण अगली पीढी में स्थानान्तरण हेतु।
➤ यह दो प्रकार का होता है, सम प्रजनन (Close Breeding) और अन्तरवंश प्रजनन (Line Breeding)।
i. सम प्रजनन (Close Breeding ) :- इस विधि में नर एंव मादा आपस में निकटतम सम्बन्धी होते हैं। जैसे - भाई x बहन, पुत्र x मां, पुत्री x पिता
(i) BBC Test (Bromothyle Blue Cestalese ) :- इससे वीर्य का pH एवं शुद्धता का परीक्षण करते है।
➤ वीर्य का pH - 6.7 एवं आपेक्षिक घनत्व - 1.035
➤ भैंस के नर के वीर्य का pH - 7.4
➤ वीर्य का पीला रंग - राइबोफ्लेविन
➤ वीर्य में गंध का कारण - एमिन्स (वर्षण में निर्मित)
➤ सर्वाधिक गुणवत्तायुक्त वीर्य का रंग - गाढा क्रीमी
(ii) MBR Test (Methyle Blue Reductase ):- वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या एवं गतिशीलता का परीक्षण करते है।
➤ शुक्राणुओं की गतिशीलता 40 प्रतिशत होना आवश्यक होती है।
[3] वीर्य का तनुकरण :- Egg Yolk Citrate एवं साइट्रिक अम्ल का उपयोग तनुकरण हेतु किया जाता है।
[4] वीर्य का भण्डारण :-
1. कमरे के तापमान पर :- गर्मी में 4-6 घंटे, सर्दी में - 10-12 घंटे
2. 4°C तापमान पर :- 3–4 दिन तक
3. -196°C तापमान पर :- इसमें तरल / द्रव N2 के अंदर भण्डारित किया जाता है।
➤ भण्डारण के लिए क्रायोकेनजार यंत्र का उपयोग करते है।
➤ 10-15 साल तक भण्डारित कर सकते हैं
4. जमे हुए वीर्य को अनन्त काल तक भण्डारित कर सकते हैं
[5] वीर्य का सेंचन :- वीर्य की मात्रा 0.5 से 2 ml.
➤ रेक्टोवेजाइनल विधि - गाय व भैंस में प्रयोग की जाती है।
➤ वेजाइनल स्पेकुलम विधि – भेड़ व बकरी में प्रयोग की जाती है।
प्रजनन पद्वतियाँ :- (Breeding System)
पशुओं में प्रजनन की दो पद्वतियाँ (System) है, अन्तः प्रजनन व बहिः प्रजनन पद्वतियाँ।1. अन्तः प्रजनन (In Breeding): - प्रजनन की इस विधि में 4-6 पीढ़ी तक सम्बन्धित नर एंव मादा पशुओं के बीच कराया गया प्रजनन अन्तः प्रजनन कहलाता है।
➤ समान गुण अगली पीढी में स्थानान्तरण हेतु।
➤ यह दो प्रकार का होता है, सम प्रजनन (Close Breeding) और अन्तरवंश प्रजनन (Line Breeding)।
i. सम प्रजनन (Close Breeding ) :- इस विधि में नर एंव मादा आपस में निकटतम सम्बन्धी होते हैं। जैसे - भाई x बहन, पुत्र x मां, पुत्री x पिता
ii. अन्तरवंश प्रजनन (Line Breeding ) :- इस विधि में थोडे दूर के सम्बन्धों के नर एंव मादा के मध्य प्रजनन कराया जाता है। जैसे- दादा x पोती, चचेरा भाई x चचेरी बहन
2. बहिः प्रजनन (Out Breeding ) :- प्रजनन की इस विधि में असम्बन्धित नर एवं मादा के बीच प्रजनन कराया जाता है। जिनका 4-6 पीढी तक कोई सम्बन्ध नहीं होता है।
➤ इससे नवीन गुणों वाले नई नस्ल के पशु तैयार किए जा सकते है।
➤ इसे निम्न भागो में विभाजित किया जाता है:-
i) . भिन्न संकरण (Out Crossing )
ii). क्रमोन्नति (Grading up)
iii). प्रसकरण (Hybridization)
iv). संकरण (Cross Breeding)
i ). भिन्न संकरण (Out Crossing ) :- इस विधि में एक ही शुद्ध नस्ल के असंबधित पशुओं के नर व मादा के बीच प्रजनन कराया जाता है।
➤ गिरी हुई नस्ल को सुधारने हेतु उपयोगी।
ii). क्रमोन्नति (Grading up) :- इसमें शुद्ध नस्ल वाले सांड को अशुद्ध नस्ल की गाय के साथ प्रजनन करवाया जाता है।
2. बहिः प्रजनन (Out Breeding ) :- प्रजनन की इस विधि में असम्बन्धित नर एवं मादा के बीच प्रजनन कराया जाता है। जिनका 4-6 पीढी तक कोई सम्बन्ध नहीं होता है।
➤ इससे नवीन गुणों वाले नई नस्ल के पशु तैयार किए जा सकते है।
➤ इसे निम्न भागो में विभाजित किया जाता है:-
i) . भिन्न संकरण (Out Crossing )
ii). क्रमोन्नति (Grading up)
iii). प्रसकरण (Hybridization)
iv). संकरण (Cross Breeding)
i ). भिन्न संकरण (Out Crossing ) :- इस विधि में एक ही शुद्ध नस्ल के असंबधित पशुओं के नर व मादा के बीच प्रजनन कराया जाता है।
➤ गिरी हुई नस्ल को सुधारने हेतु उपयोगी।
ii). क्रमोन्नति (Grading up) :- इसमें शुद्ध नस्ल वाले सांड को अशुद्ध नस्ल की गाय के साथ प्रजनन करवाया जाता है।
➤ इस प्रजनन से उत्पन्न मादा संतति का प्रजनन पुनः पीढी दर पीढी इन्हीं शुद्ध नस्ल के सांडों से करवाते हैं।
➤ इससे 6–7 पीढीयों में अशुद्ध पशुओं का समूह शुद्ध पशुओं के समान गुणों वाला हो जाता है।
➤ इससे प्रथम पीढी में 50% गुण तथा 6-7 पीढी तक 99.99% गुण शुद्ध नस्ल के सांड के आ जाते हैं।
iii). प्रसंकरण (Hybridization): - इस प्रकार के सकरंण में विभिन्न जाति अथवा प्रजाति के नर मादाओं के मध्य प्रजनन कराया जाता है। जैसे- खच्चर - गधे x घोड़ी , हिन्नी – गधी x घोड़े , केटलो - अमेरिकन गाय x अमेरिकन भैंसा , हिसारडेल भेड मेरिनो भेड x बीकानेरी भेड
iv). संकरण (Cross Breeding ) :- इस विधि में नर एंव मादा अलग-अलग नस्ल के होते है।
➤ इससे 6–7 पीढीयों में अशुद्ध पशुओं का समूह शुद्ध पशुओं के समान गुणों वाला हो जाता है।
➤ इससे प्रथम पीढी में 50% गुण तथा 6-7 पीढी तक 99.99% गुण शुद्ध नस्ल के सांड के आ जाते हैं।
iii). प्रसंकरण (Hybridization): - इस प्रकार के सकरंण में विभिन्न जाति अथवा प्रजाति के नर मादाओं के मध्य प्रजनन कराया जाता है। जैसे- खच्चर - गधे x घोड़ी , हिन्नी – गधी x घोड़े , केटलो - अमेरिकन गाय x अमेरिकन भैंसा , हिसारडेल भेड मेरिनो भेड x बीकानेरी भेड
iv). संकरण (Cross Breeding ) :- इस विधि में नर एंव मादा अलग-अलग नस्ल के होते है।
जैसे - ब्राउन स्विस x साहीवाल = करनस्विस
➤ संकरण के निम्न प्रकार होते है।
(A). Criss Crossing / Rotational/ Alternate Crossing :- इस विधि में दो विभिन्न नस्लों के शुद्ध नर मादाओं का प्रजनन एकान्तर रूप में करवाते है।
(B). त्रिसंकर (Triple Crossing) :- इसमें एक साथ तीन या इससे अधिक विभिन्न नस्लों के शुद्ध नर मादाओं का प्रजनन कराया जाता है।
(C). चरम संकरण ( Top Crossing ) :- इस विधि में मादा को अपनी ही वशावली के अंतिम सांड से मिलाया जाता है।
(D). पितृ संकरण ( Back Crossing ) :- इस विधि में दो विभिन्न नस्लों के शुद्ध नर मादाओं से सहवास कराया जाता है तथा इस सहवास के बाद जो संतति पैदा होती है उसका सहवास पुनः शुद्ध तक से कराया जाता है।
➤ संकरण के निम्न प्रकार होते है।
(A). Criss Crossing / Rotational/ Alternate Crossing :- इस विधि में दो विभिन्न नस्लों के शुद्ध नर मादाओं का प्रजनन एकान्तर रूप में करवाते है।
(B). त्रिसंकर (Triple Crossing) :- इसमें एक साथ तीन या इससे अधिक विभिन्न नस्लों के शुद्ध नर मादाओं का प्रजनन कराया जाता है।
(C). चरम संकरण ( Top Crossing ) :- इस विधि में मादा को अपनी ही वशावली के अंतिम सांड से मिलाया जाता है।
(D). पितृ संकरण ( Back Crossing ) :- इस विधि में दो विभिन्न नस्लों के शुद्ध नर मादाओं से सहवास कराया जाता है तथा इस सहवास के बाद जो संतति पैदा होती है उसका सहवास पुनः शुद्ध तक से कराया जाता है।
पशु में गर्भाधान का उपयुक्त समय :-
➤ मद में आने के 12 घंटे पश्चात पशु को गर्भित कराना चाहिए।➤ गाय के जनन अंग में अण्डे के जीवित रहने की अवधि - 120 घंटे
➤ गाय के जनन अंग में शुक्राणु की जीवन अवधि - 24 से 30 घंटे
➤ गाय के जनन अंग में शुक्राणु की विकास अवध - 6 घंटे
पशु में गर्भधारण की जांच :-
➤ गाय, भैंस को ब्याने के बाद 3 माह के अंदर गर्भित करा देना चाहिए।➤ यदि मादा गर्भाधान के 19 से 21 दिन पश्चात् वापस मद में नहीं आती है, तब गर्भ ठहरने की संभावना बनती है।
➤ पशुओं में गर्भाधारण की जांच रेक्टम पालपेशन विधि द्वारा गर्भाधारण के 60 दिन पश्चात करते है।
➤ गाय ब्याने के 60 से 90 दिन के भीतर ही गर्भाधारण कर लेती है।
➤ नर पशु का मुख्य प्रजनन अंग - वृषण
➤ नर पशु का मुख्य प्रजनन हार्मोन - टेस्टेस्टेरोन
➤ मादा पशु का मुख्य प्रजनन अंग - अण्डाशय / डिम्ब ग्रंथियां
➤ मादा पशु का मुख्य प्रजनन हार्मोन - प्रोजेस्टेरॉन व एस्ट्रोजन
➤ भ्रूण का विकास गर्भाशय / यूट्रस में होता है।
➤ 'प्रसव के पश्चात 6-8 घंटे के अंदर जेर / प्लेंसेटा गिर जानी चाहिए।
मदकाल (Heat Period/Eastrus period) :-
➤ वह अवस्था जिसमें मादा पशु संभोग की इच्छुक होती है। इसे हीट / गर्मी / ताव / पाली में आना भी कहते हैं।
➤ मदकाल की तीन अवस्थाएं होती है-
1. अगेती अवस्था - 0–8 घंटे
2. मध्य/स्थिर अवस्था - 8-18 घंटे
3. पश्च अवस्था - 18-24 घंटे
➤ यौवनारम्भ (Puberty) :- पशु के जीवनकाल की वह अवस्था जिसमें उसके प्रजनन अंग क्रियात्मक हो जाते है। (अण्डाशय पूर्ण विकसित एवं अण्डाणु बनने की प्रक्रिया प्रारम्भ)
➤ मदचक्र (Heat cycle / Eastrus cycle ) :- दो मदकालों के मध्य शारीरिक क्रियात्मक घटनाओं को ( Heat Cycle) मदचक्र कहते है। यह वह अवधि है जिसमें पशु गर्भधारण कर भ्रूण के विकास के लिए अपने शरीर सुरक्षित वातावरण प्रदान करते है।
➤ गर्भकाल (Gestation Period) :- किसी पशु के ग्याभिन होने से बच्चा देने तक के बीच की अवधि को गर्भकाल कहते हैं।
➤ साइलेंट हीट :- वह अवस्था जिसमें पशु मद के लक्षण स्पष्ट रूप से प्रदर्शित नहीं करता है | उदा.- भैंस
➤ मदकाल की तीन अवस्थाएं होती है-
1. अगेती अवस्था - 0–8 घंटे
2. मध्य/स्थिर अवस्था - 8-18 घंटे
3. पश्च अवस्था - 18-24 घंटे
➤ यौवनारम्भ (Puberty) :- पशु के जीवनकाल की वह अवस्था जिसमें उसके प्रजनन अंग क्रियात्मक हो जाते है। (अण्डाशय पूर्ण विकसित एवं अण्डाणु बनने की प्रक्रिया प्रारम्भ)
➤ मदचक्र (Heat cycle / Eastrus cycle ) :- दो मदकालों के मध्य शारीरिक क्रियात्मक घटनाओं को ( Heat Cycle) मदचक्र कहते है। यह वह अवधि है जिसमें पशु गर्भधारण कर भ्रूण के विकास के लिए अपने शरीर सुरक्षित वातावरण प्रदान करते है।
➤ गर्भकाल (Gestation Period) :- किसी पशु के ग्याभिन होने से बच्चा देने तक के बीच की अवधि को गर्भकाल कहते हैं।
➤ साइलेंट हीट :- वह अवस्था जिसमें पशु मद के लक्षण स्पष्ट रूप से प्रदर्शित नहीं करता है | उदा.- भैंस
शुष्क काल/ सुखाना (Dry Period) :-
➤ प्रसव के पूर्व की विश्राम अवस्था जब ग्याभिन एवं दुधारू पशु का दूध सूखा दिया जाता है।
➤ उपयुक्त अवधि :- 60-90 दिन
➤ दुध सुखाने की विधियाँ :-
1. पूर्णतः दुग्ध दोहन बंद कर देना।
2. अनियमित दुग्ध दोहन।
3.अपूर्ण दुग्ध दोहन।
4.आहार की मात्रा कम / बंद कर देना।
➤ पशुओं में दो ब्यात के बीच का अंतराल गाय 12 माह, भैंस में - 15 माह
➤ दुध सुखाने की विधियाँ :-
1. पूर्णतः दुग्ध दोहन बंद कर देना।
2. अनियमित दुग्ध दोहन।
3.अपूर्ण दुग्ध दोहन।
4.आहार की मात्रा कम / बंद कर देना।
➤ पशुओं में दो ब्यात के बीच का अंतराल गाय 12 माह, भैंस में - 15 माह
नर पशुओं में बधियाकरण / कास्ट्रेशन :-
➤ नर पशुओं के वृषण को हटाकर समाप्त कर देना ताकि वह अपने लैंगिक गुण प्रदर्शित नहीं कर सके। अर्थात् प्रजनन क्षमता समाप्त कर देना।
➤ बधियाकृत नर पशु को बुलक कहा जाता है।
➤ बधियाकृत नर बकरा वीडर कहलाता I
➤ इसका उपयोग मांस उत्पादन, कृषि कार्य या वजन उठाने में करते है
➤ उपयुक्त उम्र - 1 वर्ष
➤ मादा बच्चों में बधियाकरण – स्पेइंग
➤ बधियाकृत नर पशु को बुलक कहा जाता है।
➤ बधियाकृत नर बकरा वीडर कहलाता I
➤ इसका उपयोग मांस उत्पादन, कृषि कार्य या वजन उठाने में करते है
➤ उपयुक्त उम्र - 1 वर्ष
➤ मादा बच्चों में बधियाकरण – स्पेइंग
➤ विधियाँ :-
(1) बरडीजो कास्ट्रेटर विधि :- इसे रक्त रहित बधियाकरण भी कहते है।
➤ सबसे उपयुक्त विधि है।
➤ गाय, भैंस में प्रचलित विधि
(2) इलास्ट्रेटर / रबर बैंड द्वारा :- भेड व बकरी में प्रचलित विधि।
➤ अधिक दर्दयुक्त विधि है।
(3) चीरा / सर्जिकल विधि :- सूअर में प्रचलित।
➤ नसबंदीकृत नर पशु को टीजरबुल कहते है
➤ टीजरबुल का उपयोग समूह में मद में आये हुए मादा पशु में मदकाल की पहचान के लिए करते है।
(1) बरडीजो कास्ट्रेटर विधि :- इसे रक्त रहित बधियाकरण भी कहते है।
➤ सबसे उपयुक्त विधि है।
➤ गाय, भैंस में प्रचलित विधि
(2) इलास्ट्रेटर / रबर बैंड द्वारा :- भेड व बकरी में प्रचलित विधि।
➤ अधिक दर्दयुक्त विधि है।
(3) चीरा / सर्जिकल विधि :- सूअर में प्रचलित।
नर पशुओं में नसबंदीकरण (Vasectomization/Sterilizations):-
➤ नर पशुओं की शुक्राणु वाहिनी नलिका को हटा देना ताकि समागम (Sexual contact) के समय शुक्राणु रहित वीर्य स्खलित हो सके।➤ नसबंदीकृत नर पशु को टीजरबुल कहते है
➤ टीजरबुल का उपयोग समूह में मद में आये हुए मादा पशु में मदकाल की पहचान के लिए करते है।
Tags
Animal Husbandry