कृषि में उपयोग में लाई जाने वाली सभी खाद (Manure) के बारे में सम्पूर्ण अध्ययन यहाँ पर करने वाले है, जिसमे सभी कृषि खादों (Agriculture Manure) को बिंदुवार जानेंगे।
कृषि में काम आने वाली खाद (Agriculture Manure)
👉 वे सभी पदार्थ जो वनस्पति और पक्षियों के मल मूत्र से प्राप्त होते है या फार्म के उप उत्पाद (By-Product) होते है उसे खाद (Manure) कहते है।
👉 वे अकार्बनिक रासायनिक पदार्थ जो कारखानों में तैयार किये जाते है उसे उर्वरक (Fertilizer) कहते है।
👉 वे खादें जो जन्तुओं के अवशेष पदार्थों से या पशुओं से प्राप्त पदार्थों की सहायता से किये जाते है। उदाहरणार्थ ऊन की खाद, रक्त की खाद, हड्डी की खाद, गोबर की खाद, ग्वानों, मनुष्य के मल की खाद (Night soil) पाशविक खाद (Animal Manure) कहलाती है।
👉 वे खादें जो सामान्य रूप से पौधों के विभिन्न अंगों व अवशेष पदार्थों से तेयार किये जाते है। पेड़ -पौधों की पत्तियां, शाखायें, जड़ें आदि वनस्पतिक खाद (Vegetable Manure) कहलाती है।
👉 कार्बनिक खादों को दो उपवर्गो में बांटा गया है-
- 1. स्थूल कार्बनिक खादें (Bulky organic manure) - गोबर की खाद
- 2. हल्की कार्बनिक खादें (Light organic manure) - खलियों की खाद
👉 अकार्बनिक खादों को प्राय: उर्वरक कहा जाता है।
👉 वे खादें जिनके अवयव पौधों की खाद में पाये जाते है तथा जिनका मुख्य स्त्रोत खनिज चट्टानें है, जैसे सोडियम तथा पोटेशियम के सल्फेट्स, सोडियम नाइट्रेट खनिज खाद (Mineral Manures) कहलाती है।
👉 वे खादें जो सामान्य रूप से पौधों के विभिन्न अंगों व अवशेष पदार्थों से तैयार की जाती हैं। वह वनस्पति खाद कहलाती है। जैसे- पेड़-पौधों की फलियां, शाखाऐँ, जड़े आदि।
👉 वे खादें जो पौधों की एक या एक से अधिक पोषक तत्व प्रदान करते हैं-अमोनिया सल्फेट, सुपरफास्फेट, पोटेश्यिम सल्फेट आदि विशिष्ट खाद (Special Manures) कहलाती है।
👉 नत्रजन (Nitrogen) उर्वरकों से नाइट्रोजन मिलती है।
👉 नाईट्रेट उर्वरकों से नाइट्रोजन नाइट्रेट के रूप में उपस्थित रहती है जैसे-अमोनियम सल्फेट, निर्जलीय अमोनिया, अमोनियम क्लोराइड आदि।
👉 जिन नत्रजन उर्वरकों में नाइट्रोजन एमाइड रूप में रहती है जैसे - यूरिया, कैल्शियम सायनामाइड आदि उसे एमाइड उर्वरक कहते है।
👉 उर्वरक पानी में शीघ्र विलय होते है। जैसे सिंगल सुपर फास्फेट ट्रिपर सुपर फास्फेट, मोनों अमोनियम फास्फेट, डाइअमोनियम फास्फेट आदि जल विलय फॉस्फेट कहलाते है।
👉 पानी तथा साइट्रेट में अविलेय फास्फॉरस उर्वरक रॉक फॉस्फेट, हड्डी का चूरा होता है।
👉 क्लोराइड युक्त पोटाश उर्वरक म्यूरेट ऑफ़ पोटाश या पोटेशियम क्लोराइड कहलाते है।
👉 क्लोराइड के अलावा अन्य किसी रूप में पाये जाने वाले पोटाशिक उर्वरक मैग्नीशियम कार्बोनेट, पोटेशियम सल्फेट, पोटेशियम नाइट्रेट कहलाते है।
👉 उदासीन उर्वरक (Natural Fertilizer) CAN कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट
👉 अमोनियम कार्बोनेट मृदा में डाला गया यूरिया यूरियेज एन्जाइम की उपस्थिति में सूक्ष्म जीवों द्वारा जल विश्लेषित होकर बदल जाता है।
👉 सरल उर्वरक (Straight Fertilizer)- वे उर्वरक जिनमें एक ही पोषक तत्व होता है। उन्हें सरल उर्वरक कहते हैं। जैसे- यूरिया, अमोनियम सल्फेट।
👉 द्वितीय उर्वरक (Binary Fertilizer)- वे उर्वरक जिनमें दो मुख्य पोषक तत्व होते हैं उन्हें द्वितीय उर्वरक कहते है। जैसे पोटेशियम नाइट्रेट।
👉 तृतीय उर्वरक (Compound Fertilizer)- वे उर्वरक जिनमें तीन मुख्य पोषक तत्व होते है उन्हें Complex उर्वरक कहते है। जैसे अमोनियम, पोटेशियम फॉस्फेट ।
👉 यौगिक या जटिल उर्वरक- ऐसा उर्वरक जिसमें कम से कम दो मुख्य पोषक तत्व रहते हैं तथा जिसे रासायनिक प्रतिक्रिया द्वारा प्रायः दाने के रूप में बनाया जाता है, यौगिक उर्वरक कहलाता है। नाइट्रोफास्फेट, अमोनियम फास्फेट एवं डाइअमोनियम फॉस्फेट
👉 मिश्रित उर्वरक (Mixed Fertilizer) - कुछ सरल उर्वरकों को खेत में एक ही बार डालने के उद्देश्य से भौतिक रूप से मिलाया जाता है, ऐसे मिश्रण को मिश्रित उर्वरक कहते हैं। जैसे:-नाइट्रोफॉस्फेट को पोटाश के साथ मिश्रण N.P.K. 15 : 15 : 15 अनुपात में आपूर्ति करता है।
👉 पूर्ण उर्वरक (Complete Fertilizer)- पूर्ण उर्वरक में तीनों प्राथमिक मुख्य पोषक तत्व(N,P,K,) पाये जाते हैं। -
👉 कम गणनात्मक उर्वरक (Low analysis ) - अपूर्ण उर्वरक जिनमें प्राथमिक पोषक तत्वों की कुल मात्रा 25% से कम होती है। जैसे- SSP (16% P2O2) सोडियम नाइट्रेट (16% N)
👉 उच्चगणनात्मक उर्वरक (High analysis fertilizer) - ऐसे उर्वरक जिनमें प्राथमिक पोषक तत्वों की कुल मात्रा 25% से अधिक है। जैंसे- यूरिया (46% N) एनहाइड्रस अमोनिया (82.2% N) अमोनिया फास्फेट (20%N+20%P2O2) और DAP (18%N+46%P2O2)
👉 सबसे अधिक आद्रताग्राही नत्रजन उर्वरक है - अमोनिया नाइट्रेट व दूसरे स्थान पर यूरिया है।
👉 टॉप ड्रेसिंग - खडी फसल में उर्वरक देने की विधि कहलाती है।
👉 बेसल ड्रेसिंग - बुवाई से पूर्व उर्वरक देने को कहते हैं।
👉 आधी मात्रा फसल बुवाई से पूर्व एवं आधी मात्रा फसल में टॉप ड्रेसिंग विधि द्वारा की मात्रा को फसल में देना चाहिए।
👉 नाइट्रोजन की मात्रा को फसल में देना चाहिए ।
👉 फर्टिगेशन- सिंचाई के साथ उर्वरक देने को कहा जाता है।
👉 पर्णीय छिडकाव- उर्वरकों का घोल के रूप में फसल छिडकाव करने को कहते हैं।
👉 1-2% उर्वरकों का पर्णीय छिडकाव करते समय घोल में पोषक तत्व की मात्रा होनी चाहिए ।
👉 भारत में सर्वाधिक उपयोग किया जाने वाला उर्वरक यूरिया है।
👉 पोटेशियम युक्त उर्वरकों में पोटाश ऑक्साइड के रूप में व्यक्त की जाती है।
👉 युरिया (NH2-CO-NH2) के रूप में दी जाने वाली नाइट्रोजन पौधों द्वारा एमाइड (NH2 ) के रूप में रूप में ग्रहण की जाती है।
👉 सोडियम नाइट्रेट मूलतः क्षारीय प्रकृति का उर्वरक है।
👉 सोडियम नाइट्रेट में सोडियम 27% प्रतिशत होता है।
👉 सोडियम नाइट्रेट का उपयोग अम्लीय मृदाओं में किया जाता है।
👉 किसान खाद को केन (CAN) उर्वरक कहा जाता है।
👉 केन (CAN) या किसान खाद की प्रकृति उदासीन होती है।
👉 तंबाकू, आलू, गन्ना फसलों में पोटाश का अत्यधिक महत्व समझा जाता है।
👉 तंबाकू की फसल में पोटाश उर्वरक नहीं देने पर पत्तियां कागज की तरह जल जाती है।
👉 तंबाकू की फसल में पोटेशियम सल्फेट उर्वरक का उपयोग किया जाता है।
👉 DAP में 18% नाइट्रोजन व 48% फास्फोरस पोषक तत्व होते हैं।
👉 मोनो अमोनियम फॉस्फेट में 11% नाइट्रोजन व 48% फास्फोरस पोषक तत्व होते हैं।
👉 नाइट्रो फॉस्फेट में 20% नाइट्रोजन व 20% फास्फोरस पोषक तत्व होते हैं।
👉 शस्य सघनता किसी क्षेत्र में 1 वर्ष में बोये गये कुल फसल क्षेत्र एवं कुल कृषित क्षेत्र का प्रतिशत अनुपात होता है।
👉 फसलों के अंदर कार्बनिक खादों को इसलिए दिया जाता है क्योंकि इनसे पोषक तत्व धीरे-धीरे प्राप्त होते हैं।
👉 धान एवं आलू फसलें नाइट्रोजन उर्वरक का अमोनिया के रूप में प्रत्यक्ष अवशोषण करती है।
जैविक खाद (Organic manure)
👉 टिकाऊपन खेती एवं प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण जैविक खेती का उद्देश्य है।
👉 जैविक खेती का विश्व में बायाडाइनैमिक खेती, अग्निहोत्र, ऋषि खेती, परमाकल्चर रूपों में प्रयोग किया जाता है।
👉 जैविक खेती में दलहनी फसलों का प्रयोग करने का प्रमुख कारण नाइट्रोजन का जैविक स्थिरीकरण है।
👉 जैविक खेती में फार्म को जीवित संगठन रूप में माना जाता है।
👉 मनुष्य जैविक खेती के महत्वपूर्ण अंग खेत, पशु, उद्यान मित्र कीट, जीवाणु, औषधीय फसलें है।
👉 भारत में प्रतिवर्ष 280 मिलियन टन गोबर पैदा होता है।
👉 भारत में प्रतिवर्ष 273 मिलियन टन फसल अवशेष पैदा होता है।
👉 बायोडीजल प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण पौधा जैट्रोपा (रतन जोत) है
👉 भारत के 47% प्रतिशत मृदा भाग में जस्ता (Zn) की कमी दर्ज की गई है।
👉 भारत में 11% मृदाओं में लोहे की कमी पायी गई है।
👉 भारत में 4.8% मृदाओं में तांबे की कमी पायी गईं है।
👉 जैविक खेती को रासायनिक खेती का प्रबल विकल्प माना जाता है।
👉 जैविक खेती में जीवांश एवं प्रकृति प्रदान संसाधन उपयोग किया जाता है।
👉कृत्रिम खादों, रासायनिक उर्वरकों, कीट नाशियों, फफुंद नाशियों एवं कुररसायनों का जैविक खेती में उपयोग निषिद्ध है।
👉 भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जैविक कार्यक्रम की शुरूआंत अप्रैल 2000 में हुई थी।
👉 आर्गेनिक प्रॉडक्ट प्रमाणीकरण के लिए स्पाइस बोर्ड, टी बोर्ड, कॉफी बोर्ड एवं एपीडा संस्थाओं को अधिकृत एजेंसी बनाया गया।
👉 दसवीं पंचवर्षीय योजना के तहत भारत सरकार ने जैविक खेती को राष्ट्रीय प्राथमिकता क्षेत्र घोषित है।
👉 राजस्थान राज्य जैविक उत्पादन, एवं बीज प्रमाणीकरण संस्था (RSCC)को जैविक उत्पाद प्रमाणीकरण हेतु अधिकृत एजेंसी बनाया गया हैं
👉 खाद की उत्पत्ति संस्कृत के “खाद्य” शब्द से हुई है।
👉 मेनियोर (खाद) अंग्रेजी शब्द फ्रांसीसी भाषा के शब्द Manoeverer से लिया गया है।
👉 कार्बनिक खादों को अधिक महत्वपूर्ण इसलिए माना गया है क्योंकि पोषक तत्व बहुत धीरे-धीरे प्राप्त होते है।
👉 जीवंश खादों से मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक अवस्थाओं में सुधार होता है।
👉 मूंगफली की खली बढ़िया सांद्रित जीवांश खाद होती है।
👉 मूंगफली की खली में 5-6 प्रतिशत नाइट्रोजन पायी जाती है।
गोबर की खाद (FYM)
👉 भारत में सर्वाधिक जैविक खाद गोबर की खाद का सबसे अधिक उपयोग होता है।
👉 खेतों के अन्दर गोबर की खाद का प्रभाव 2-3 वर्षो तक होता हैं।
👉 अच्छी तरह सड़ने व गलने के लिए गोबर की खाद को 23 महिनों का समय लगता है।
👉 गोबर की खाद तैयार करने की ट्रेंच विधि को डा. सी.एन. आचार्य ने प्रतिपादित किया था।+ ट्रेंच विधि में ट्रेंच का आकार 60 मीटर लम्बाई, 1.5 मीटर चौडाई एवं 1 मीटर गहराई होती है।
👉 गोबर की खाद में अमोनिया के नुकसान को रोकने के लिए जिप्सम (CaSO4 2H2O) परिरक्षीय पदार्थ काम में लेते हैं।
👉 नाइट सॉइल मानव मल कहलाता है।
👉 गोबर की खाद के मुख्य घटक गोबर, मूत्र, बिछावन तीन अवयव होते है।
👉 गोबर की खाद एवं कम्पोस्ट बनाने में सबसे प्रमुख कारक आद्रता होती है।
कम्पोस्टिंग (Composting)
👉 एक रासायनिक क्रिया जिसमें वायवीय (Aerobic) तथा अवायवीय (Anaerobic) जीवाणु कार्बनिक पदार्थों को विघटित कर बारिक खाद बनाते है।
👉 कम्पोस्ट बनाने की एडको विधि हचिन्सन एवं रिचर्डस के द्वारा इंग्लैण्ड प्रचलित की गयी है।
👉 कम्पोस्ट बनाने की एक्टीवेटिड विधि फॉऊलर व रैगे द्वारा सन् 1954 में विकसित की गयी थी।
👉 कम्पोस्ट बनाने की इंदौर विधि ए. हावर्ड एवं यशवंत डी.वार्ड के द्वारा इन्स्टीट्यूट ऑफ प्लांट न्यूट्रीशन इन्दौर में वर्ष 1924 से 1993 के मध्य विकसित की गई थी।
👉 कम्पोस्ट बनाने की बैंगलोर विधि सी.एन.आचार्य ने दी थी।
👉 भारत में कम्पोस्ट बनाने की सर्वाधिक प्रचलित विधि बैंगलोर विधि" है।
👉 कम्पोस्ट बनाने में अम्लीयता कम करने के लिए लकडी की राख मिलायी जाती है।
👉 कम्पोस्ट की नेडेप विधि- महाराष्ट्र के कृषक नाडेप काका द्वारा विकसित की गई है। इस विधि से एक टेंक से 160-175 घनफीट 3 टन कम्पोस्ट तैयार होता है।
👉 भारत में गोबर की खाद बनाने के लिए ढेर लगाकर इकट्ठा करना विधि प्रचलित है।
👉 नीम की खली में निम्बोडिन या अजेडीरेक्टिन रसायन पाया जाता है।
👉 महुआ की खली में सेपोनिन रसायन पाया जाता है।
👉 जैविक खेती में फसलों को पोषक तत्वों की आपूर्ति जीवांश या कार्बनिक खाद द्वारा होती है।
हरी खाद (Green manure)
👉हरी खाद के लिए सर्वोत्तम फसल सनई (Crotolaria juncea) होती है। इससे लगभग 80 किग्रा/ हैक्टेयर नाइट्रोजन प्राप्त होती है।
👉 हरी खाद के रूप में सनई के बाद ढ़ेचा (Sesbania asculata) का प्रमुख स्थान है। इससे लगभग 75 किग्रा / हैक्टेयर नाइट्रोजन प्राप्त होती है।
👉 हरी खाद के लिए उगाई गई सनई व ढेंचा की फसल 45 व 50 दिन बाद जमीन पलटते है।
👉 भारत के उत्तरी पश्चिम भाग जहां वर्षा कम होती है वहां पर हरी खाद के रूप में ग्वार की फसल उपयुक्त होती है।
वर्मी-कम्पोस्ट (Vermi-compost)
👉 केंचुए की खाद को वर्मी कम्पोस्ट कहते है और यह 60-दिन में तैयार हो जाती है।
👉 वर्मी कम्पोस्ट में प्रजनन व खाद निर्माण की क्रिया के 30 प्रतिशत नमी व 25 से 30 सेण्टीग्रेड तापमान आवश्यक है।
👉 वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए क्यारी की लम्बाई 40 से 45 फीट और चौड़ाई 3 से 4 फीट रखते है।
👉 वर्मीकम्पोस्ट मिश्रण में 65 प्रतिशत कृषि अपशिष्ट एवं 35 प्रतिशत गोबर का मिश्रण होता है।
👉 वर्मीकम्पोस्ट बनाने वाले कुंचुए तीन प्रकार एपीजिक केंचुए, इन्डोजिक केंचुए, डायोजिक केंचुए होते है।
👉 एपीजिक केंचुए - सतह पर (1 मीटर की गहराई तक) व 90 प्रतिशत कृषि अपशिष्ट एवं 10 प्रतिशत मृदा खाते है। प्रमुख प्रजातियां आईसीनिया फाइटीडा एवं यूड्रिलिस यूजिनी, फेरेटिमा, इलोन्गेटा, पेरेनिप्स आर्वोशीकोली होते है।
👉 इन्डोजिक केंचुए- भूमि में गहरी सुरंग (3 मीटर से अधिक) व 90 प्रतिशत तक मिट्टी व 10 प्रतिशंत कार्बनिक पदार्थ खाते है। इस किस्म के केचुएं जल निकास के लिए उपयोगी है।
👉 डायोजिक केंचुए - मिट्टी में 1-3 मीटर की गहराई में होते है।
👉 वर्मी कम्पोस्ट में एक्टीनोमाइसिटी गोबर की खाद की तुलना में 8 गुणा अधिक होते है।
👉 केंचुए मृदा की जलशोषण क्षमता में 20 प्रतिशत तक की वृद्धि करते है।
👉 वर्मी कम्पोस्ट में जल वाष्पीकरण पेरीट्रोपिक झिल्ली के कारण कम होता है।
👉 केंचुए की खाद युक्त में वर्षा की बूंदों के आघात सहने की क्षमता साधारण मृदा की अपेक्षा 56 गुणा अधिक होती है।
👉 सामान्य फसलों में वर्मी कम्पोस्ट की मात्रा 5 टन / हैक्टयर की देनी चाहिए।
👉 सब्जियों में वर्मी कम्पोस्ट की मात्रा 5-7.5 टन / हैक्टयर देनी चाहिए।
👉 फलदार वृक्षों में वर्मीकम्पोस्ट की मात्रा 5 किलो पौधा देनी चाहिए।
👉 फूलों की क्यारियों में वर्मीकम्पोस्ट की 1-2 किलो / वर्गमीटर की मात्रा देनी चाहिए
👉 राजस्थान की परिस्थितियों में सबसे अधिक केंचुए की प्रजाति आइसीनिया फोइटीडा होती है। इसकी लम्बाई लगभग 3 से 4 इंच और लाल रंग के होते है तथा यह 90 प्रतिशत कार्बनिक पदार्थ 10 प्रतिशत मिट्टी खाते है।
👉 अंधेर में केंचुए सबसे अधिक क्रियाशील रहते है।
👉 60 दिन में वर्मीकम्पोस्ट बनकर तैयार हो जाता है।
👉 केंचुए ऑक्जिन हार्मोन का स्त्राव करते है।
👉 जीवांश खाद का उपयोग करने से मृदा का pH मान कम हो जाता है।
जैव उर्वरक (Bio Fertilizer)
👉 वे उर्वरक जिनमें पोषक तत्व जीवित जीवाणुओं द्वारा प्रदान किये जाते है उसे जैव उर्वरक कहलाते है।
👉 फसल की उपज को बढ़ाने के लिए सूक्ष्म जीवाणुओं को बीजोपचार करके भूमि में मिलाते है। इस प्रकार की जीवित सामग्री को जैविक उर्वरक कहते है।
👉 नाइट्रोजन युक्त जैव उर्वरक राइजोबियम, एजेटोबेक्टर, एजोस्पाइरलम, नील हरित शैवाल एवं एजोला होते है।
👉 फॉस्फोरस विलयशील सूक्ष्म जीव, माइकोराइजा फॉस्फोरस विलेय जैव उर्वरक होते है।
👉 राइजोबियम जैव उर्वरक का उपयोग कपास, मक्का, गेहूं, जौ, तिलहन, सब्जियों आदि के लिए उपयोग किया जाता है।
👉 एजोस्पिरिलम जैव उर्वरक का उपयोग मक्का, धान, गन्ना ज्वार बाजरा, सब्जियां में किया जाता है।
👉 नील हरित शैवाल एवं एजोला का उपयोग धान की फसल के लिए किया जाता है।
👉 फॉस्फोरस विलयशील सूक्ष्म जीव उर्वरको का उपयोग सभी प्रकार की फसलों एवं सब्जियों के लिए किया जाता है।
👉 माइकोराइजा जैव उर्वरक का उपयोग वृक्ष, फलदार पौधों के लिए किया जाता है।
👉 जैव उर्वरक के उपयोग से फसलों की उपज में 10-20 प्रतिशत तक की वृद्धि की जा सकती है।
👉 जैव उर्वरकों की सबसे प्रभावी विधि बीजोपचार के लिए सबसे प्रभावी मानी जाती है।
👉 नील हरित शैवाल की मुख्य प्रजातियां एनाबिना, साइटोनिया, आसीलेटोरिया है।
👉 भूमि में जैविक खाद मिलाने पर भूमि की नमी संचक करने की क्षमता नमी संचय क्षमता बढ़ती है।
👉 माइकोराइजा एक फर्न है।
👉 माइकोराइजा का उदाहरण- वेसिकुलर अरबोसकुलर माइकोराइजा (VAM) है।
👉 भारत में कृषि अपशिष्ट पदार्थों की उपलब्धता लगभग 75 करोड़ टन है।
खाद में पोषक तत्व मात्रा-
खाद N P K
1. वर्मकम्पोस्ट 2.5 - 3.0% , 1.5 - 2.0 P% , 1.5-2.0%
2. गोबर की खाद 0.5% , 0.25% , 0.5%
3. नेडेप कम्पोस्ट 0.5 -1.5% , 0.5 - 0.9% , 1.2 -1.4%
4. गहरी कम्पोस्ट 1.5% , 1.0% , 1.5%
5. बिनोले की खली 3.99% , 1.8% , 1.62%
6. महुआ की खली 2.5% , 6.80% , 1.85
7. मूंगफली की खली 7.29% , 1.55% , 1.33%
8. अलसी की खली 5.27% , 1.84% , 1.16%
9. हड्डी के चूरे 3.5- 4.8% , 1.8-2.5%
10. नीम की खली 5.22% , 1.08 % , 1.48%
11. कुसुम की खली 7.9% , 2.2% , 1.9 %
12. शहरी कम्पोस्ट 1.5% , 0.5% , 1.0 %
मृदा सूक्ष्मजीव (Soil Micro Organism)
1. शैवाल (Algae)-
👉 सृक्ष्मदर्शी क्लोरोफिल युक्त जीव जो एक कोशिकीय या फिलोमेन्टस के रूप में या कालोनी में पाये जाते है उन्हें मृदा शैवाल (एल्गी) कहते है।
👉 मृदा एल्गी चार प्रकार के नीली हरी एल्गी, हरी एल्गी, पीली हरी एल्गी व डायटम होती है।
👉 नीली हरी एल्गी उष्ण मृदाओं में पायी जाती है।
👉 हरी एल्गी व डायटमास शीतोष्ण क्षेत्रों में पाये जाते है।
👉 कभी-कभी पीली हरी एल्गी मृदाओं में पायी जाती है।
👉 हरी एल्गी अम्लीय मृदाओं में पायी जाती है।
👉 नीली हरी एल्गी (BGA) उदासीन एवं क्षारीय मृदाओं में पायी जाती है।
👉 मृदा के ऊपरी सतह पर (10-12 Inch) एल्गी पायी जाती है।
👉 एल्गी स्वपोषित प्रकार का जीव है।
👉 एल्गी नाइट्रोजन को नाइट्रेट के रूप में ग्रहण करती है।
👉 मृदाओं में एल्गी pH >5 मान पर पायी जाती है।
👉 मृदाओं के ऊपरी सतह पर एल्गी की संख्या 2-8 लाख होती है।
👉 एल्गी का धान की फसलों में प्रमुख योगदान ऑक्सीजन उपलब्धता में होता है।
👉 नीली हरी एल्गी वायुमण्डल से नाइट्रोजन (प्रकाश पर निर्भर नहीं) का स्थिरीकरण करती है।
👉 नाइट्रोजन को स्थिर करने में एल्गी को मालीब्डेनम (उपयुक्त pH- 7.0 से 8.5) पोषक तत्व की आवश्यकता होती है।
2. फंजाई (Fangi) -
👉 मृतोपजीवी तथा परजीवी जिनमें क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है उसे फंजाई कहते हैं।
👉 मृदा में अधिकांश फंजाई मृतजीवी होते है |
👉 मृदा में फंजाई के तीन वर्ग अधिक प्रधान होते है 1. यीस्ट 2. मोल्डस 3. छत्रक (मशरूम)
👉 यीस्ट अधिकांश मृदाओं में व कम मात्रा में पाया जाता है।
👉 सूत्रों तथा तंतुओं से मोल्डस की संरचना बनती है।
👉 मृदाओं में फंजाई की संख्या 20 हजार से एक मिलियन तक होती है।
👉 मृदा में फंजाई का वितरण सर्वाधिक 6 इंच तक (सतह पर) होता है।
👉 फंजाई (कवक) के लिए अनुकूल pH- 4.5 से 5.5 तक होता है।
👉 मृदा में फंजाई का कार्य प्रोटीन को विच्छेदित करके अमीनों अम्ल एवं अमोनिया बनाना होता है।
👉 फोमा वंश की फंजाई (कवक) प्रजातिया वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को स्थिर करती है।
👉 परजीवी फंजाई (कवक) का मुख्य कार्य फसलों में रोग (Wilt, Rust, Blight, Smut) आदि करता है।
👉 फसलों में सबसे अधिक रोग कवक द्वारा होते है।
👉 माइको का निर्माण मुख्य रूप से नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की कम मात्रा वाले क्षेत्रों की मृदाओं में होता है।
👉 माइकोराइजा का निर्माण मुख्य रूप से जिन जड़ों में कार्बोहाइड्रेड का बहुत भण्डार होता है।
3. एक्टीनोमाइसिटीज -
👉 एक कोशिकीय धागे के समान, कवक से छोटे एवं बैक्टीरिया से बड़े होने के कारण इसे एक्टीनोमाइसिटीज कहते है।
👉 एक्टीनोमाइसिटीज के तन्तुओं का व्यास 0.5-1.5 micron होता है।
👉 एक्टीनोमाइसिटीज के वंश नोकार्डिया एवं स्ट्रेप्टोमाइसीज मृदाओं में मिलते है।
👉 एक्टीनोमाइसिटीज मृदा के pH- 5 से कम पर निष्क्रिय हो जाते है।
👉 एक्टीनोमाइसिटीज की सक्रियता pH- 6.5-8.0 सर्वाधिक होती है।
👉 मृदाओं में एक्टीनोमाइसिटीज की संख्या 1.5-2 करोड़ तक होती है।
👉 एक्टीनोमाइसिटीज के कारण आलू में आलू की स्क्रेच बीमारी रोग हो जाता है।
👉 एक्टीनोमाइसिटीज के कारण शकरकन्द में शकरकन्द पोक्स रोग हो जाता है।
4. जीवाणु (Bacteria) -
👉 मृदा में उपस्थित सूक्ष्म जीवों में बैक्टीरिया की संख्या सबसे अधिक होती है।
👉 बैक्टीरिया एक कोशिय तथा अति सूक्ष्म जीव तथा इनमें क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है।
👉 आकृति के अनुसार बैक्टीरिया तीन प्रकार के प्रकार के होते है।
1.गोल, 2. लम्बे छड़दार-वैलीलस, 3. सर्पिल
👉 बैक्टीरिया की सक्रियता अधिक नम मृदाओं में अधिक होती है।
👉 तापमान के आधार पर बैक्टीरिया तीन प्रकार के होते हैं -
1. मिलोफाइल (25-35०C) 2. साइक्रोफाइल (<20०C) 3. थर्माफाइल (45-55०C)
👉 बैक्टीरिया के लिए उपयुक्त माध्यम उदासीन मृदाऐं होती है।
👉 अम्लीय मृदाओं में चूना मिलाने पर बेक्टीरिया की सक्रियता बंद हो जाती है।
👉 अमोनियम को नाइट्राइट में आक्सीकृत नाइट्रोसोमोनस बैक्टीरिया द्वारा किया जाता है।
👉 नाइट्राइट को नाइट्रेट में ऑक्सीकृत नाइट्रोबैक्टीरिया द्वारा किया जाता है।
👉 मृदा में सूक्ष्म जीवों का विकास एवं सक्रियता O2, CO2, तथा N2 , की सान्द्रता पर निर्भर करती है।
👉 एक्टीनोमाइसिटीज 7.0 से 7.5 pH पर सक्रिय होते हैं
👉 बैक्टीरिया एवं प्रोटोजोआ 6-8 pH पर सक्रिय होते हैं।
👉 कवक 4-5 pH पर अधिक सक्रिय होते हैं।
👉 एजोटोबैक्टर < 6 pH पर निष्क्रिय होते हैं।
👉 नाइट्रोजन स्थिरीकरण सूक्ष्म जीव अल्प क्षारीय (pH- 6.5 - 8.0) प्रकार की मृदाओं में अधिक सक्रिय होते हैं।
👉 मृदा में सूक्ष्म जीवों की वृद्धि एवं सक्रियता के लिए 30-40 ०C तापमान होना चाहिए।
👉 एनाबीना और नॉस्टोक एल्गी नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती है।
👉 मालिब्डेनम तथा वेनेडियम पोषक तत्व नाइट्रोजन स्थिरीकरण में एजोटोबैक्टर के लिए आवश्यक है।
👉 विटामिन A, D एवं E विटामिन्स सूक्ष्म जीवों की वृद्धि के लिए आवश्यक नहीं हैं।
👉 C : N अनुपात विस्तृत होने पर विच्छेदन की गति कम होती है।
👉 C : N अनुपात कम होने पर विच्छेदन की गति अधिक होती है।
👉 विच्छेदन के लिए 30-40०C तापमान माना जाता है।
👉 लिग्निन का विच्छेदन कवक व बैक्टीरिया द्वारा नहीं होता है।
👉 लिग्निन का विच्छेदन एक्टीनोमाइसीटिज के द्वारा होता है।
👉 मृदा के हुमस की रचना में मुख्य रूप से लिग्निन भाग लेते हैं।
👉 यूरिया का विच्छेदन यूरियेज एन्जाइम जो यूरिया को अमोनिया कार्बोनेट में बदल देता है।
👉 मृदा में कार्बनिक पदार्थों में स्थितिक ऊर्जा विद्यमान होती है।
👉 एक ग्राम शुष्क मृदा का मान 4 से 5 किलो कैलोरी होता है।
👉 नाइट्रोजन खनिजन का वह प्रक्रम है जिसमें अकार्बनिक रूप अमोनिया एवं नाइट्रेट में रूपान्तरण होता है।
👉 वह प्रक्रम जिसके द्वारा प्रोटीन तथा अन्य संकीर्ण नाइट्रोजन युक्त कार्बनिक यौगिक एन्जाइम की क्रिया के फलस्वरूप एमीनों एसीड में परिणित हो जाते हैं एमीनीकरण कहलाती है।
👉 नाइट्रीकरण वह प्रक्रम जिसमें मृदा में उपस्थित अमोनियम नाइट्रोजन नाइट्रेट में परिवर्तित हो जाती है।
👉 नाइट्रोसोमोनस अमोनिया को नाइट्राइट में परिवर्तित करते हैं।
👉 नाइट्रोबैक्टर नाइट्राइट को नाइट्रेट में परिवर्तित करते हैं।
👉 नाइट्रोसोमोनस 35-70 मोल अमोनिया आक्सीकृत करता है
👉 राइजोबियम के लिए उपयुक्त 5.5 -7.0 pH माना जाता है।
👉 कवक माइसीलियम में 8.7-39.5 प्रतिशत पोटाश होता है।
👉 एजोला एक फर्न (जलीय) जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण का काम करता है।
👉 लेग्यूम बैक्टीरियम की वृद्धि के लिए अत्यन्त आवश्यक तत्व बोरॉन है।
👉 कवक के लिए जिंक (Zn) पोषक तत्व आवश्यक है।
👉 नाइट्रोजन स्थिरीकरण फसलों द्वारा स्थिरत की गई नाइट्रोजन की मात्रा -
- 1. सनई - 80 Kg / हैक्टेयर
- 2. ढैंचा - 75 Kg / हैक्टेयर
- 3. ग्वार - 56 Kg / हैक्टेयर
- 4. लोबिया - 50 Kg / हैक्टेयर
- 5. मूंग - 35 Kg / हैक्टेयर
- 6. सेंजी - 120 Kg / हैक्टेयर
- 7. खेसारी - 55 Kg / हैक्टेयर
- 8. बरसीम - 54 Kg / हैक्टेयर
👉 सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया -
- 1. राइजोबियम मेलीलोटी - रिजका, स्वीट क्लोवर
- 2. राइजोबियम ट्राइकोली - क्लोवर
- 3. राइजोबियम लेग्यूमिनोसेरम - मटर, मसूर
- 4. राइजोबियम फजिओली - फैजीओलस, मोठ
- 5. राइजोबियम जैपोनिकम - सोयाबीन
- 6. राइजोबियम लूपिनी - वार्षिक और बहु वार्षिक लूपिन
- 7. राइजोबियम अनामित जातियां - लोबिया, लीमा, बीन, मूंगफली
👉 असहजीवी स्थिरीकरण द्वारा प्रतिवर्ष 20-00 Kg प्रति हैक्टेयर नाइट्रोजन स्थिर होती है।
👉 बैक्टीरिया प्रति पौण्ड नाइट्रोजन स्थिर करने में 20 पौण्ड कार्बोहाइड्रेट का उपयोग करते हैं।
👉 C : N अनुपात
- 1. भूसा एवं भूसा जैसे अन्य पदार्थ - 90:1
- 2. रिजका - 13:1
- 3. जई का भूसा - 80:1
- 4. दलहनी घासों का सूखा चारा - 25:1
- 5. कवक - 10:1
- 6. बैक्टीरिया - 5:1
- 7. एक्टीनोमाइसिटीज - 6:1
- 8. FYM - 20-30:1 (20:1)
👉 C : N अनुपात संकीर्ण होने पर नाइट्रेट नाइट्रोजन पौधों को अधिक मिलता है।
👉 नाइट्रोबैक्टर 70 - 100 मोल नाइट्राइट ऑक्सीकृत करता है।
👉 सबसे अधिक नाइट्रीकरण की दर अमोनिया सल्फेट उर्वरक की होती है।
👉 नाइट्रीकरण 50-70% जल धारण क्षमता पर सुचारू रूप से होता है।
👉 नाइट्रीकरण के लिए 6.8-7.8 pH- होना चाहिए।
👉 नाइट्रीकरण के लिए तापमान 30-35०C होता है।
👉 नाइट्रीकरण की गति 5०C से कम एवं 40०C से अधिक पर कम हो जाती है।
👉 C : N अनुपात कम होने पर अधिक और अधिक होने पर नाइट्रीकरण कम होता है।
👉 नाइट्रीकरण के लिए 10 : 1 या इससे कम C : N अनुपात होता है।
👉 नाइट्रेट अवकरण तथा स्वांगीकरण की अनेकों प्रक्रमों द्वारा मृदा से नाइट्रेट का लुप्त होना प्राय: विनाइट्रीकरण कहलाता है।
👉 उर्वरकों या सूक्ष्म जीवों द्वारा निर्मित कुल NH4 का एक चौथाई भाग गैस के रूप में हास हो जाता है।
👉 वायुमण्डल में नाइट्रोजन की मात्रा 78% आयतन आधार पर होती है।
👉 वायुमण्डल में नाइट्रोजन की मात्रा 75% भारात्मक आधार पर होती है।
👉 नाइट्रोजन स्थिरीकरण वह क्रिया जिसमें वायुमण्डलीय तत्वीय नाइट्रोजन मृदा में स्थायी अकार्बनिक या कार्बनिक नाइट्रोजनीय यौगिकों में परिवर्तित हो जाती है।
👉 आकाश में बिजली चमकने से वायुमण्डल नाइट्रोजन आक्सीजन से क्रिया करके नाइट्रिक अम्ल बनाती है।
👉 भारत में वर्षा से 8.8 पौण्ड / एकड नाइट्रोजन प्राप्त होती है।
👉 नाइट्रोजन स्थिरीकरण में आयरन का मुख्य कार्य उत्प्रेरक का है।
👉 वायुमण्डल की नाइट्रोजन से संयोग नाइट्रोजीनेज एन्जाइम समूह करता है।
👉 एजोटोबैक्टर द्वारा नाइट्रोजन का स्थिरीकरण 7.0-7.5 pH पर अधिकतम होता है।
👉 एजोटोबैक्टर 6.0 pH पर निष्क्रिय हो जाते हैं।
👉 मॉलिब्डेनम, कैल्शियम तथा आयरन पोषक तत्वों की नाइट्रोजन स्थिरीकरण में आवश्यकता पड़ती है।
👉 नीली हरी एल्गी द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण के समय Ca लेकिन कभी-कभी स्ट्रान्शियम का उपयोग कर लेते हैं।
👉 अम्लीय मृदाओं में नाइट्रोजन स्थिरीकरण बिजोरिन्किया स्पेशीज (pH 3-9) द्वारा किया जाता है।
👉 एजोटोबैक्टर फॉस्फोरस की अधिक मात्रा वाली मृदाओं में अधिक पाया जाता है।
👉 एजोटोबैक्टर 5-10 Kg नाइट्रोजन स्थिर करने पर 1 mg फॉस्फोरस का उपयोग करता है।
👉 फलीदार फसलों की जडो पर उपस्थित ग्रन्थियाँ लेगहिमोग्लोबिन आयरन के यौगिक की उपस्थिति के कारण लाल रंग की होती है।
👉 एक भाग मॉलिब्डेनम की उपस्थिति में 37000 भाग नाइट्रोजन स्थिर होती हैं।
👉 वायु से नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए 4.5-5.0 pH होना चाहिये।
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