Weeds and Their Control | खरपतवार एवं उनका नियंत्रण

Weeds and Their Control | खरपतवार एवं उनका नियंत्रण



शस्य विज्ञान के इस टॉपिक के अंतर्गत हम खरपतवार एवं उनका नियंत्रण (Weeds and Their Control) के बारे में विस्तृत जानकारी के साथ ही खरपतवार एवं उनका नियंत्रण के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।

Weeds and Their Control | खरपतवार एवं उनका नियंत्रण


खरपतवार (Weeds) :-

➤ खरपतवार विज्ञान का जनक जैथ्रो टुल वैज्ञानिक को कहा जाता है।
➤ डॉ. बील के अनुसार ‘यदि कोई पौधा उस स्थान पर उगता है जहां उसे नहीं उगाना चाहिए उसे खरपतवार कहते है।’
खरपतवार (जैथ्रो टुल, 1781) -‘खरपतवार वे अनइच्छित पौधे हैं जो किसी स्थान पर बिना बोये उगते है और जिनकी उपस्थिति कृषक को लाभ की तुलना में हानिकारक अधिक है।’
खरपतवार (वैन्कले के अनुसार) -’खरपतवार एक ऐसा पौधा है जो इतनी प्रचुर मात्रा में उगता है कि अधिक महत्वपूर्ण पोषक गुणों वाले पौधे की बढवार को रोक देता है।’
राबिन्स के अनुसार - ‘खरपतवार पौधो की ऐसी जातियां है जो अवांछित रूप से उगती है या जो उपयोगी नहीं होती है।’

खरपतवारों की विशेषताएं -
➤ खरपतवार फसलों की अपेक्षा बीज उत्पन्न करते हैं-लाखों में ज्यादा (बथुआ, चौलाई, मकोय)।
➤ खरपतवारों के बीच जमीन के अंदर 25-40 वर्षों तक (बथुआ के बीज) जीवित रह सकते हैं।
➤ खरपतवारों के फूल फसलों की अपेक्षा जल्दी आते हैं।
➤ खरपतवारों की जडे जमीन में 5-6 मीटर (कॉस, वायसुरी, हिरनखुरी एवं जवासा) गहराई तक जाती है।
➤ कांस व हिरनखुरी की जड भूमि में 20 फीट गहराई तक जाती है।
➤ जवासे की जड भूमि में 13 फीट गहराई तक जाती है।
➤ सरसों,सत्यानासी के बीज व जंगली पालक के बीज खरपतवारों के बीजों का रंग सहचर फसलों के समान होता है।
➤ फसलों की अपेक्षा खरपतवारों में भूमि जलवायु की देशायें तथा रोगों व बीमारियों के सहन करने की क्षमता अधिक होती है।
➤ नागफनी, झडबेरी खरपतरवारों में जलवायु दशायें एवं बीमारियों से लडने की क्षमता अधिक होती है।
➤ खरपतवारों की जल मांग फसलों की अपेक्षा कम होती है।
➤ खरपतवारों के बीजों का विकिरण बीजों पर लगे पंखो, हुक, बाल व कांटे द्वारा होता है।
➤ गैंहू के मामा (फेलरिस माइनर) खरपतवारों की शक्ल गैहूं की फसल से मिलती जुलती है।
➤ जंगली चौलाई का एक पौधा 196000 बीज पैदा करता है।
➤ मकोय का एक पौधा 178000 बीज पैदा करता है।
➤ स्ट्रीगा का एक पौधा आधा करोड बीज प्रतिवर्ष पैदा करता है।
➤ सत्यानासी का एक पौधा 5000 बीज प्रतिवर्ष पैदा करता है।
➤ जंगली जई का एक पौधा प्रतिवर्ष 250 बीज उत्पन्न करता है।
➤ खरपतवार कीट व रोगों को शरण देते हैं। जैसे – कद्दू वर्गीय सब्जियों में लगने वाला एफिड कीट हिरणखुरी खरपतवार पर शरण लेता है।

खरपतवारों का वर्गीकरण-निम्न प्रकार से है-

(A) जीवन चक्र के आधार पर-

1. एक वर्षीय खरपतवार - यह खरपतवार एक वर्ष या कम समय में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेते हैं।
जैसे- खरीफ ऋतु-पत्थर चट्टा, बिसखपरा, जंगली चौलाई रबी ऋतु - बथुआ, सत्यनाशी, प्याजी,कृष्ण नील, गुल्ली डण्डा।
2. द्विवर्षीय खरपतवार - यह खरपतवार प्रथम वर्ष में अपनी वानस्पतिक वृद्धि करते हैं तथा दूसरे वर्ष बीज उत्पन्न करते हैं। जैसे -जंगली जई, जंगली गोभी
3. बहुवर्षीय खरपतवार - यह खरपतवार एक बार उग जाने के बाद से दो से अधिक वर्षों तक जीवित रहते हैं जैसे - कॉस, मोथा, झडबेरी, हिरनखुरी, लटजीरा, दूब घास।

(B) पत्तियों की बनावट के आधार पर -

➤ चौडी पत्ती वाले खरपतवार जंगली चौलाई, बथुआ, हिरनखुरी, मकोय, पत्थरचट्टा, वायसूरी, चटरीमटरी है।
➤ संकरी पत्ती वाले खरपतवार दूब, मौथा, कॉस, मकरा है।

(C) फसल संबंध के आधार पर -
 
➤ निरपेक्ष खरपतवार (Absolute Weeds) - इस वर्ग के अन्तर्गत वे सभी खरपतवार आते है जो उपज को कम कर देते है। इसमें एक वर्षीय, द्धि-वर्षीय व बहुवर्षीय खरपतवार आते है जैसे- बथुआ, सत्यनासी, कृष्णनील, हिरणखुरी, मोथा।
सापेक्ष/सम्बन्धित खरपतवार (Relative Weeds)- इस वर्ग में फसलों के वे पौधे जिनकी किसान खेत में बुवाई नहीं करता है तथा वे स्वतः ही उग जाते है, सापेक्ष खरपतवार कहलाते हैं। जैसे - गेहूं के खेत में चना, सरसों, जौ, मटर का पौधो उगना।
अवांछित खरपतवार (Rougue Weeds)- जब किसी फसल की दूसरी अनिश्चित जाति का पौधा बिना बोये खेतों में उग रहा है तो वह अवांछित कहलायेगा और इसे उखाडने की प्रक्रिया को रोगिन कहते हैं। जैसे- एचडी-2009 गेहूं के खेत में आर.आर. 21 गेहं के पौधे का उगना।
अनुकारी अथवा नकलची (Mimicry) खरपतवार - धान के खेत में जंगली धान, गेहूं के खेत में जंगली जई व मंडूसी (Phalaris minor) जैसे खरपतवार अपने परपोषी फसल के पौधों के साथ बाह्य आकारिकी (Morphology) में मिलते है और फसल के साथ-साथ बढ़ते रहते है। इन्हें अनुकारी या नकलची खरपतवार करते है।
आपत्तिजनक खरपतवार (Objectionable weed ) - वे खरपतवार जिनके बीज मुख्य फसल में मिल जाने पर उनको अलग करना कठिन होता है। जैसे - सरसों के बीज में सत्यनाशी, बरसीम में कासनी, रिजके में कसकुटा, गेहूं में हिरनखुरी,
स्वेच्छिक खरपतवार (Volounter weeds) - मुख्य फसल में पहले सीजन में बोयी गयी फसल के पौधों का उगना जैसे - मूंगफली या सोयाबीन के पौधों का द्वितीय सीजन में उगना।

( D) बीज पत्र के आधार -

एक बीजपत्री खरपतवार - प्याजी, मोथा, दूब घास, मकरा कॉस, जंगली जई, बनचरी आदि।
द्वि बीजपत्रीय खरपतवार - बथुआ, कृष्णनील, बिसखपरा, सत्यनासी, लटजीरा, जगंली चौलाई मकोय, हिरनखुरी,मुरेला (सेंजी),दूद्धी आदि।

( E) मृदा एवं जलवायु के आधार पर -

जलमग्न भूमियों के खरपतवार - जलकुम्भी, वेलिसनेरिया, हाइड्रिला आदि।
रेगिस्तानी खरपतवार - जवासा, करील, वायसुरी, झडबेरी, चौलाई आदि।
➤ खरपतवारों की पोषक पदार्थों के साथ प्रतिस्पर्धा निम्न है-
खरपतवार - पोषक तत्व
1. बथुआ - पौटेशियम
2. पोर्चुलाका - पौटेशियम
3. सटेरिया - जिंक
4. अमरेन्थस - नाइट्रोजन
5. डिजीटेरिया - फॉस्फोरस
कृषि खेत के खरपतवार - जंगली गोभी, बथुआ, हिरनखुरी, प्याजी, सेंजी आदि।

खरपतवारों का फैलाव या विस्तार का माध्यम - निम्न प्रकार से होता है।
1. वायु द्वारा-आक (मदार), गेहूंसा
2. जल द्वारा-सभी खरपतवार
3. कृषि यन्त्रों द्वारा
4. फसल के बीजों के साथ
5. मनुष्य द्वारा - बिना सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग
6. पशुओं द्वारा - गोखरू,लटजीरा

एनफोर्सड सुषुप्ता - जुताई के समय जब बीज नीचे सतहों में चले जाते हैं तो इस प्रकार की सुषुप्ता अवस्था पायी जाती है।
इनेट सुषुप्ता - इनेट सुषुप्तावस्था सख्त बीज कवच जैसे गोखरू या अपरिपक्व भ्रूण जैसे स्मार्ट बीड कुछ मरूदभिद खरपतवारों के बीजों में अंकुरण नियंत्रण के कारण होती है।
इन्डयूसड सुषुप्ता – कुछ बीजों में देहिक परिवर्तनों के कारण इस प्रकार की सुषुप्तावास्था पैदा होती है। जंगली जई।
➤ जंगली जई के खरपतवार के बीजों में तीनों प्रकार की सुषुप्तावस्था पाई जाती है।
➤ खरपतवारों द्वारा फसल की पैदावार में हानि 30-35 प्रतिशत तक आंकी गई है।
➤ खरपतवारों द्वारा महत्वपूर्ण फसलों की पैदावार में हानियां
1. गेहूं -33 %
2. धान - 40 %
3. मक्का -47 %
4. ज्वार - 40 %
5 चना व गन्ने - 50%

खरपतवारों का दुष्प्रभाव -
➤ खरपतवारों के बीजों के कारण सत्यनाशी के बीज (सरसों के साथ से) ड्राप्सी बीमारी फैलती है।
➤ जंगली प्याजी व लहसुन खरपतवार दूध वाले जानवरों को खिलाने पर दूध में दुर्गन्ध आती है।
➤ चटक चाँदनी या कांग्रेस घास (Parthenium) के कारण जानवरों में खुजली फैलती है।
➤ सत्यनाशी खरपतवार के कारण बेरी-बेरी रोग फैलता है।

➤ फसलों को खरपतवार रहित रखने की क्रान्तिक अवधि -
1. वार्षिक फसलें - 15 से 30 दिन
2. धान - 30 दिन
3. गेहूं - 20-30 दिन
4. सोयाबीन - 15-20 दिन
5. गन्ना - 30-120 दिन
6. चुकन्दर - 30 दिन
➤ बथुआ खरपतवार सबसे अधिक जल का उपयोग करता है।
➤ सबसे ज्यादा नाइट्रोजन मटर कुल के खरपतवारों में पायी जाती है।
➤ सबसे अधिक कैल्शियम दुद्धी व कम्पोजिटी कुल खरपतवारों में पायी जाती है।
➤ सबसे अधिक पोटेशियम चीनोपोंडिएसी कुल (बथुआ व चौलाई) के खरपतवारों में पाया जाता है।
➤ बथुआ का वाष्पोत्सर्जन गुणांक 638 होता है।
➤ बथुआ की वाष्पोत्सर्जन क्षमता 1.52 होती है।
➤ मक्का का वाष्पोत्सर्जन गुणांक व वाष्पोत्सर्जन क्षमता 361 व 2.17 होती है।
➤ गेहूं का वाष्पोत्सर्जन गुणांक व वाष्पोतसर्जन क्षमता 550 व 1.82 होती है।
➤ सिरसियम आर्वेन्स की जड़ों का व्यास 0.63 सेमी व लम्बाई 2.5 सेमी होने पर अंकुरण प्रतिशत शत प्रतिशत होता है।
➤ कम उर्वर भूमियों में फसल - खरपतवार प्रतियोगिता मुख्यतया मृदा में पोषक तत्व की कमी के कारण होती है।
➤ प्याजी खरपतवार में, फूल आने के बाद, बीज कम से कम 15 दिन में पक जाते है।
➤ सूखा पडने पर फसल खरपतवार प्रतियोगिता प्रकाश के कारण होती है।
➤ विशेष सूक्ष्म जलवायु (Microclimate) के खरपतवार कॉसनी को छायायुक्त व ठंडी नम जलवायु की आवश्यकता होती है जो बरसीम व रिजका की फसल में मिलती है।

खरपतवारों का प्रजनन -

(A) बीज से पैदा होने वाले खरपतवार (Propagate by seed)
- जंगली चोलाई, कृष्णनील, दूद्धी, सत्यनासी जंगली गाजर, बथुआ व प्याजी आदि।
(B) वनस्पति भागों से पैदा होने वाले खरपतवार - (Propagate by vegetative parts)
1. जडों से पैदा होने वाले खरपतवार - हिरनखुरी, मौथा
2. तने से पैदा होने वाले खरपतवार - दूब, एग्रोपाइरोन, रिपेन्स
3. पत्तियों से पैदा होने वाले खरपतवार – पत्थर चट्टा, बोगनविलीया,ब्रायोफाइलम
4. प्रकन्द (राइजोम) द्वारा उप - मोथा।
5. कन्द (ट्यूबर) - कांस
(C) बीज व वानस्पतिक भागों से पैदा होने वाले खरपतवार काँस व मौथा कहलाते है।
(D) तने की वृद्धि के आधार पर खरपतवारों का वर्गीकरण पांच प्रकार से किया जाता है।
1. सीधे बढ़ने वाले खरपतवार (Erect weed) - बथुआ, जंगली चौलाई, कृष्ण नील।
2. फैलने वाले खरपतवार (Prostate weeds) - गोखरू, चिकवीड, पत्थर चट्टा।
3. ट्रेलिंग खरपतवार (Trailing weeds) - हिरनखुरी, चटरी मटरी व मुनमुना।
4. आरोही खरपतवार (Climbing weeds) - कन्टुरी (सेफोलन्ड्रा इन्डिका)।
5. रैंगने वाले खरपतवार (Creeping weeds) - दूधी, नूनिया, दूब घास।

(E) मृदा व जल प्रबन्धन के आधार पर खरपतवारों का वर्गीकरण 12 प्रकार से किया जाता है।
1. रेगिस्तानी खरपतवार (Desert weeds) करील व जवासा।
2. जलमग्न भूमियों के खरपतवार (Weeds of water logged) जल कुम्भी, एजोला, जंगली धान, सावा
3. दलदली भूमियों के खरपतवार (Weeds of marshy lands) काँस व सरपत।
4. चिकनी भूमियों के खरपतवार (Weeds of marsh land) - दूब ।
5. आकृषित क्षेत्रों के खरपतवार (सडके, रेलमार्ग, गोदाम, हवाई) - काँस, वरू, लैन्टाना कैमरा, धतूरा।
6. परजीवी खरपतवार को निम्न प्रकार से बांटा गया है-
(अ) पूर्ण जड़ परजीवी - औराबंकी/ ब्रूमरेप (फसल-तम्बाकू सरसों ,आक,टमाटर, मिर्च इत्यादि)।
(ब) अर्द्ध जड़ परजीवी - स्ट्राइगा/रूखड़ी/वीच वीड (फसल- ज्वार, बाजरा, गन्ना, सुरजमुखी)
(स) पूर्ण तना परजीवी - अमरबेल/डोडर / कस्कुटा रिफ्लेक्सा (फसल-रिजका, मिर्च, सोयाबीन)
(द) अर्द्ध तना परजीवी - लोरेन्थस/डेन्ड्रोप्थी (फसल- आम, चाय, गुलाब, चन्दन, सागवान)
7. शुष्क क्षेत्रों के खरपतवार - झरबेरी व वायसुरी।
8. क्षारी भूमि के खरपतवार - सैंजी (मुरेला) व लटजीरा।
9. अम्लीय भूमि के खरपतवार - कंघी व क्रोटोन स्पारमीफ्लोरा ।
10. चारागाह क्षेत्रों के खरपतवार - बहुवर्षीय (पोआ, एनुआ)।
11. कृषित क्षेत्रों के खरपतवार सभी खरपतवार।
12. वन क्षेत्रों के खरपतवार-झरबेरी, लेन्टाना कैमरा, अकेशिया अवेबि, काँस, मंजू नरकूल।

सैजेज खरपतवार - जो खरपतवार एक वर्षीय व बहुवर्षीयखरपतवार अपनी वृद्धि नट, बल्ब, टयूबर व राइजोम से करते है। जैसे-साइप्रस स्पेसीज।
प्रभागीय व संकाय (Facultative) खरपतवार - इस वर्ग के खरपतवार पहले जंगली जातियों के साथ उगते है तथा कृषिगत भूमियों पर पहुंचकर फसलों के साथ पूर्ण प्रतियोगिता कर मनुष्य के क्रिया कलापों (Affairs) को सहन करते हुए उगाना प्रारम्भ कर देते है। जैसे नागफनी
अविकल्पी (Obligate) खरपतवार - जो खरपतवार कृषि भूमियों या अव्यवस्थित (Disturbed) भूमियों में अन्य पौधों की जातियों से प्रतियोगिता नहीं कर पाते उन्हें अविकल्पी खरपतवार कहते है जैसे- हिरनखुरी
अनिष्टकारी (Noxious) खरपतवार - वे खरपतवार जो अनइच्छित, कष्टप्रद व साधारण मनुष्यों के नियंत्रण के बाहर है। जैसे कांसनी, अमरबेल, दूब घास, मौथा, काँस आदि।
निरोधात्मक उपाय खरपतवार प्रतिबन्ध (Prevention) खरपतवारों का नये क्षेत्रों में वितरण एवं विस्तार को रोकना ही खरपतवार प्रतिबन्ध कहलाता है।
उन्मूलन (Eradication) - किसी क्षेत्र विशेष में खरपतवारों को पूर्णतया या पूर्णरूप से नष्ट करना ही खरपतवार उन्मूलन कहलाता है।
➤ बीज अधिनियम के अनुसार फसल के बीजों में 0.1% से अधिक खरपतवारों के बीज नहीं होने चाहिए।

खरपतवारों की रोकथाम या नियन्त्रण की विधियां-
1. यात्रिक विधियां (Mechanical methods)
2. कृषि विधियां (Cultural method)
3. जैविक विधियां (Biological method)
4. पादप प्रजनन विधियां (Plant breeding method)
5. लैंसर किरण विधियां (Lacer rays method)
6. रसायन विधियां (Chemical method)

A. खरपतवार नियन्त्रण की यांत्रिक विधियां निम्न प्रकार से है-
1. हाथ से उखाडना (Hand pulling)
2. हाथ से निराई गुडाई करना - एकवर्षीय खरपतवारों को नष्ट करने की सबसे अच्छी विधि है।
3. खरपतवारों का काटना (Weed moving)
4. कृत्रिम आवरण अथवा पलवार (Mulching)
5. बाढ द्वारा खरपतवार नष्ट करना (Flooding)
6. आग लगाकर (Burning)
7. जुताई द्वारा खरपतवारों को नष्ट करना (Tillage)
8. जलीय खरपतवारों को काटकर बाहर निकालना
9. मोअर का प्रयोग

B. खरपतवार नियन्त्रण की कृषि अथवा शस्य वैज्ञानिक विधियां निम्न है-
1. फसलों की छांट (Selection of Crops)
2. फसल की जातियों की छांट (Selection of crop varieties)
3. फसल चक्र (Crop rotation)
4. खादों की किस्म (Kind of manure)
5. भूमि सुधारकों का प्रयोग (Use of soil amendments)
6. निस्तेज बीज क्यारी (Stale seed bed)
7. कम जुताई (Minimum tillage)
8. फसलों के बोने का समय (Sowing time of crops)
9. गर्मियों में परती रखना (Summer fallowing)
10. बोने की विधि (Sowing method)
11. बीज की दर एवं पंक्तियों व पौधों की पारस्परिक दूरी (Seed rate and spacing between rows and plant)
12. कटाई की विधि (Method of harvesting)
13. बोने की दिशा (Direction of sowing)
14. कृषण क्रियायें
15. फसल मृदा जल प्रबंध (Crops soil water management)

16. सिंचाई की विधियां -

हवेली प्रणाली - प्रबन्ध द्वारा खरपतवार नियंत्रण (मध्य प्रदेश में परती खेतों में वर्षा ऋतु में 2-3 माह तक खेतों में पानी भरकर नष्ट करते है और बाद में यह नमी, रबी की फसलों के काम आ जाती है। यहां पर यह विधि हवेली प्रणाली (Haveli System) के नाम से जानी जाती है।

C. खरतपवार नियंत्रण की जैविक विधि -
➤ खरपतवारों को नष्ट करने के लिए इस विधि में कीट पतंगों, जीवाणुओं तथा अनेक प्रकार की वनस्पतियों का प्रयोग किया जाता है।

➤ खरपतवार के प्राकृतिक शत्रुओं (Bioagent) के प्रकार
1. रोग जनक (Pathogens) - वायरस (विषाणु), जीवाणु (Bacteria) व फफूंदी
2. कीट पतंगे - डिप्टेरा, कोलियोप्टरा, हेमीप्टेरा, लेपिडोप्टेरा, एग्रोमाइजा, थैला व क्रोसीडोसेमा आदि जाति के कीट पतंगों का प्रयोग किया जाता है।
वर्ष - मित्र कीटका नाम - खरपतवार का नाम - आयातित देश का नाम
1921 - क्रोसीडोसोमा लेन्टाना - लेन्टाना केमरा - मैक्सिको
1926 - डेक्टाइलोपियस ओपन्सी - नागफनी - श्रीलंका
1982 - निओकटिना बुची - जलकुम्भी - सं. रा. अमेरिका
1983 - जाइगोग्रामा बाइकलराटा - गाजर घास - मैक्सिको

3. कशेरूकी प्राणी (Vertebrates) -
1. हँस (Geese) - कपास के खरपतवार - केलिफोर्निया प्रांत अमेरिका
2. बतख (Ducks) - धान के जलीय खरपतवार - केरल
3. कार्प मछलियां - जलीय खरपतवार - जलीय क्षेत्र, एलगी, जलकुम्भी
4. घोंघे (Snails) - जलीय खरतपवार - जलकुम्भी
5. पक्षी (घरेलू चिड़िया) - एक वर्षीय खरपतवार - समशीतोष्ण क्षेत्र

➤ जिरामनी (लैन्टाना कैमेरा) का जैविक नियंत्रण किया जाता है-
(अ) क्रोसोडोसेमा लेन्टानामा
(ब) एग्रोमाइजा लेन्टानी
➤ कार्प मछलियों द्वारा जलीय खरपतवारों का नियंत्रण किया जाता है।
➤ घोंघे के द्वारा जलकुम्भी खरपतवार पर नियंत्रण हो सकता है।
➤ गोखरू (पंक्चर वाइन) खरपतवार का नियंत्रण माइक्रकोलेरियस लायपर्सिफोर्निस नाम धुन से नियंत्रण किया जाता है।
➤ सर्वप्रथम सन् 1980 में तीन बायो खरपतनाशी (डिवाइन, कोलिगो,बायोमाल) यू.एस.ए.में लांच किये गये है।
➤ डिवाइन-एक प्रकार का कवक (फाइटोप्थैरा परमीबोरा) से निर्मित है। यह माइक्रोनाशी है जो मुख्य रूप से मोरिनिया आडोराटा, स्ट्रेगलर व मिल्क बीड एवं सिट्रस के नियंत्रण हेतु उपयोग में लाया जाता है।
➤ बायोमाल (Biomall) - इसमें कोलेटोट्रिकम ग्लाइयोस्पोर फंगस के स्पोर शामिल है। यह पोस्ट इमरजैंस है, यह घास की दो पत्तियों की अवस्था में छिडकाव करते हैं।
➤ अमरबेल (डोडर) रिंजका फसल का खरपतवार है।
➤ सनई की हरी खाद से कांस खरपतवार का नियंत्रण होता है।
➤ कपास के खेत में खरपतवार नियंत्रण का प्राकृतिक शत्रु हंस होता है।
➤ धान के खेत में खरपतवार नियंत्रण व प्राकृतिक शत्रु बतख होता है।

D. लैंसर किरणों द्वारा खरपतवारों का नियन्त्रण (Control of weeds by lanser rays) - यह विधि जलीय खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका में विकसित की गई है। कोंच आदि (1971) वैज्ञानिक न नावों पर लैंसर प्रणाली फिट करके, लैंसर किरणें विकसित कर, इनका प्रयोग खरपतवार नियंत्रण के लिये किया।

E. शाकनाशी रसायन (Herbicide/Weedicide) - वे रसायन जिनको खरपतवार नष्ट करने के लिये काम में लेते हैं।
➤ फसलों एवं खरपतवारों के उपर प्रभाव के अनुसार शाकनाशियों को दो भागों में -
1.वणात्मिक शाकनाशी (Selective/Systemic)
2.अवर्णात्मक शाकनाशी Non-Selective/Contact)
 वणात्मिक शाकनाशी (Selective/Systemic)- ये शाकनाशी किसी विशेष जाति के पौधों को ही नष्ट करते है, परन्तु इसके अतिरिक्त अन्य किसी पौधों को हानि नहीं पहुंचाते। उदाहरण- गेहूं की फसल में 2,4-D चौडी पत्ती वाले खरपतवारों को नष्ट कर देता है। उदाहरण-फ्लूक्लोरेलिन (बैसालीन), एट्राजिन, स्टाम एफ-34,सीमाजिन आदि।
अवर्णात्मक शाकनाशी- (Nonselective Herbicide)- इनका प्रभाव सभी पौधों पर एक समान पडता है। अतः इन्हें खडी फसल में प्रयोग नहीं करते। इनका उपयोग आकृषित क्षेत्रों, बंजर भूमियों, ओद्योगिक परिसरों, सडक व नहर किनारे उगे बहुवर्षीय खरपतवारों को नष्ट करने के लिए किया जाता है। उदाहरण - पैराक्वॉट,डाइक्वाट, ग्लाइफोसेट, वीड, ऑयल आदि।
मृदा सक्रिय शाकनाशी - इन रसायनों का प्रयोग फसल की बुआई के पूर्व या खरपतवारों के अंकुरण अवस्था में ही मृदा में मिलाकर करते है। सीमाजिन, एट्राजिन, बैसालीन, ट्राईफ्लूरेलिन, एलाक्लोर, E.P.T.C.आदि।
पत्र सक्रिय शाकनाशी - इन रसायनों का प्रयोग खरपतवार के पौधों में किया| जाता है। 2.4-D पैराक्वाट, डाइक्वाट, ऐमीट्रोल M.C.R.B.आदि।
सम्पर्क शाकनाशी (Contact Herbicide) - वे शाकनाशी रसायन जो पौधे के उसी भाग पर अपना प्रभाव छोडते है जो भाग इनके सम्पर्क में आता है। पैराक्वाट, डाइक्वाट, ट्रिब्यूनिल
स्थानातंरित शाकनाशी (Translocated Herbicide) - वे शाकनाशी जिनका प्रयोग पौधे के किसी भी भाग पर करने पर प्रत्येक अंग में फैलकर अपना प्रभाव छोडते है। पत्तियों पर छिडकने पर प्रभाव जड़ों तक होता है। 2-4-D, 2-4-5-T, डेलापॉन आदि।
मूल अनुप्रयोग शाकनाशी (Root application herbicide) - एट्राजीन, प्रोपेजीन, सीमाजीन, निट्रोफेन

➤ समय के आधार पर शाकनाशियों का उपयोग निम्न प्रकार करते है-
1. रोपण पूर्व शाकनाशी P.P.I. (Pre Plant Incorpolation)- यह शाकनाशी फसल की बुवाई के पूर्व खेत में डाले जाते हैं इन शाकनाशियों को मिट्टी में समाहित कर देते हैं क्योंकि यह वाष्पशील होते हैं। उदाहरण-फ्लूक्लोरेलिन, ट्राईफ्लूरेलिन, ब्यूटॉक्लोर ।

2. निर्गमन पूर्व शाकनाशी P.E. (Pre Emergence Application) - यह शाकनाशियों का उपयोग बुवाई के पश्चात किन्तु अंकुरण से पूर्व किया जाता है। उदाहरण - एट्राजिन, सीमाजिन, मैट्रीक्जीन, पेण्डीमिथालीन, लासो, टोक-ई-25, प्रोपेनिल, मोनोयूरॉन, टाफाजीन,डायूरॉन इत्यादि ।

3. निर्गमन नोत्तर शाकनाशी (Post Emergence Application) - इस शाकनाशियों का उपयोग अंकुरण के बाद किया जाता है। उदाहरण 24-D, आईसो-प्रोटोरॉन, पेराक्वाट, डाईक्वाट, ट्रिब्यूनिल, आइसोप्रोटूरॉन सल्फो-सल्फोरज शाकनाशी सकड़ी पत्ती वालें खरपतवारों को नष्ट करते हैं।
➤ जिन क्षेत्रों में लगातार वर्षा होती है वहां पर फसलों में खरपतवार नियन्त्रण की रासायनिक विधि उत्तम होती है।

➤ फसलों में प्रयोग की जाने वाली प्रमुख शाकनाशी-
क्र. फसल - रासायनिक नाम - व्यापारिक नाम - सक्रिय किग्रा/है. - खेत में प्रयोग का समय
1. धान  - ब्यूटाक्लोर - मेचेटी - 2-3 - रोपाई के बाद
            - प्रोपेनिल - स्टाम-34 - 3.0 - रोपाई के बाद
            - बैन्थियोकार्ब - सैटर्न - 1.5 - रोपाई से पूर्व

2. गेहूं,जौ - 2,4 डी(सोडियम) - 0.75 - बुवाई के 30-35 दिन बाद
               - 2,4 डी(एमाइन) - 0.50 - बुआई के 30-35 दिन बाद
               - आइसोप्राट्यूरोन - टोल्कन - 0.75 - बुआई के 30-35दिन बाद
               - मैथाबैजालि याज्यरॉन - ट्रिब्यूनिल - 1.5 - बुआई के 30-35 दिन बाद
               - मेटाक्सजूरान - डोसानेक्स - 1.5 - बुवाई के 30-35 दिन बाद

3. मक्का - सिमाजीन - टैफासिन - 1.0 - अंकुरण से पूर्व
4. ज्वार, बाजरा - एट्राजीन - एट्रेक्स - 0.5 - अंकुरण से पूर्व
5. सरसों - एलाक्लोर - लासों - 2.0 - अंकुरण से पूर्व
 
6. सोयाबीन - पैन्डीमैथालिन - स्टॉम्प - 1.5 - अंकुरण से पूर्व
                   - एलाक्लोर - लासो - 2.0 - अंकुरण से पूर्व
                   - ऑक्सीफ्लूओरफेन - गोल - 0.2 - अंकुरण से पूर्व
                   - लूक्लोरेलिन - बेसालीन - 1.5 - अंकुरण से पूर्व
 
7. मूंगफली - नाइट्रफेन - टॉक-ई-25 - 2.0 - अंकुरण से पूर्व
                  - एलाक्लोर - लासो - 2.0 अंकुरण से पूर्व
 
8. गन्ना - एट्राजीन - एट्राटाफ - 2.0 - अंकुरण से पूर्व
           - डेलापॉन - डाउपान - 2.0 - अंकुरण से पूर्व
 
9. कपास - डाइयूरॉन - कार्मेक्स - 1.0 - अंकुरण से पूर्व
               - मोनोयूरॉन - तलवार - 1.0 - अंकुरण से पूर्व

प्रमुख शाकनाशी एवं उनके व्यापारिक नाम -
Herbicide - Trade Name
1. एट्राजीन - एट्राटेक्स, ऐट्राटॉफ,गेसाप्रिम
2. एलाक्लोर - लासो, अटेक, केच
3. ब्यूटाक्लोर - मेचेटी
4. आइसोप्रोटुरॉन - रोनक, एरेलॉन, टोलकन, एरीलोन
5. फ्लूक्लोरेलीन - बेसालीन
6. मेटालोक्लोर - ड्यूल
7. मेट्रीबुजीन - सेन्कोर
8. लेक्टोफेन - कोबरा
9. नाइट्रोफेन - टोक E-25
10 मेटसल्फ्युरॉन - एस्कॉर्ट
11. मेटसल्फ्युरॉन - एस्कॉर्ट
12. ऑक्सीफ्लोरफेन - गोल
13. पेन्डीमेथेलीन - स्टोम्प
14. प्रोपेनिल - स्टॉप F-34
15. सल्फोसल्फ्युरॉन - लीडर
16. बेन्थीयोकर्ब - बोलेरो
17. ग्दाफोसट - राउण्ड अप
18. 2,4D - प्लान्ट गार्ड, वीडॉन

अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु -
➤ फसलों में कांटेदार खरपतवारों को नियन्त्रण करने के लिए रासायनिक विधि उपयोगी होती है।
➤ जिन क्षेत्रों में भूमि का कटाव हवा एवं जल से होता है वहां पर फसलों में खरपतवार नियन्त्रण की रासायनिक विधि उपयोगी होती है।
➤ मिश्रित फसलों का छोटे खेतों में उगने के कारण खरपतवार नियंत्रण की उत्तम विधि शस्य वैज्ञानिक है।
➤ विभिन्न शाकनाशियों की विषाक्ता (Toxicity) अथवा घातक खुराक (Lethal dose - L.D. 50) चूहे के प्रति किग्रा. वजन के लिए 200 से 10000 मिग्रा. होता है।
➤ दानेदार शाकनाशियों में सक्रिय अवयव (a,i) 2 से 10 प्रतिशत तक होता है।
➤ शाकनाशी 2,4-D का सोडियम लवण धूली (Dust) के रूप में मिलता है।
➤ 2,4-D की 20 PPM से कम मात्रा हार्मोन की तरह काम करती है जबकि 20 PPM से अधिक मात्रा शाकनाशी के रूप में काम करती है।
➤ भारत में सबसे ज्यादा कीटनाशी कपास में तथा बाद में धान व सब्जियों में प्रयोग करते हैं।
➤ विश्व का पहला शाकनाशी 2,4-D है। इसकी खोज पोकरोनी वैज्ञानिक ने सन् 1942 में की तथा 20PPM हार्मोन जिमरमॉन व हिचकोर्क वैज्ञानिक ने बताया।
➤ विश्व में प्रयोग के आधार पर पेस्टीसाइड क्रम HIF(Herbicide> Insecticide> Fungicide)
➤ भारत में उपयोग के आधार पर सही क्रम IFH ( Insecticide> Fungicide> Herbicide)
➤ जंगली चौलाई एक वर्षीय चौड़ी पत्ती वाला खरपतवार होता है।
➤ द्विवर्षीय चौड़ी पत्ति वाला खरपतवार हिरनखुरी होता है।
➤ दूब बहुवर्षीय संकरी पत्ती वाला खरपतवार होता है।
➤ हिरनखुरी अविकल्पी खरपतवार होता है।
➤ जंगली चौलाई का प्रकीर्णन वायु द्वारा होता है।
➤ मौथा का प्रजनन कन्द (Tuber) द्वारा होता है।
➤ जल कुम्भी का विस्तार (वितरण) जल द्वारा होता है।
➤ गोखरू के बीजों का प्रकीर्णन वायु द्वारा होता है।
➤ मंडूसी (फैलेरिस माइनर) के बीजों का प्रकीर्णन फसल के बीजों के साथ होता है।
➤ पशुओं द्वारा खाये जाने पर जंगली जई के बीज गोबर से निकलकर अपनी अंकुरण क्षमता जीवित रखते है।
➤ हजारदाना अपना प्रजनन बीज के द्वारा करता है।
➤ काँस के राइजोमस (Rhizomes) तने का रूपान्तरण होता है।
➤ रोहडोडेनड्रीन खरपतवार को चरने पर पशुओं में पेचिस रोग हो जाता है।
➤ अनाज में कार्न कोकल खरपतवार के बीज 0.5 प्रतिशत तक होने पर वे अनाज को जहरीला बना देते हैं।
➤ हुल हुल खरपतवार चरने पर दुधारू पशु के दूध में दुर्गन्ध आने लगती है।
➤ जलकुम्भी खरपतवार से साइलेज बनाया जाता है।

Botanical Name OF Weeds
Common Name - Hindi name - Botanical Name - Season - Family
1. Bdnber - झरबेरी - Zizyphus rotundifolia - (K) -Rhamnaceae
2. Jangli chaulai - Amaranthus virdis - (K) - Amaranthaceae
3. Katili chaulai - Amaranthus spinosus - (K) - Amaranthaceae
4. Jangli oat - जंगली जई - Avena fatua - (K) - Gramineae
5. Legria of chirchita - Achyrathus aspera - (K) - Compositae
6. Krishnaneel - Anagallis arvensis - (R) - Primulaceae
7. Jawasa - जवासा - Alhagi camelorum - (R) - Papilionaceae
8. Satyanashi - सत्यनाशी - Argemone mexicana - (R) - Papaveraceae
9. Pyazi or ban Piazi - प्याजी - Asphodelus tenuifolius - (R) Liliaceae
10. Jangli Mehandi - Ammania bacolfera - (R) - Lythraceae
11. Bishkhapra - विषखपरा -  Boerhovia diffusa - (K) - Nyctaginaceae
12. Amarbel - अमरबेल - Cuscuta reflexa - (R) - Convolvulaceae
13. Hirankhuri - हिरनखुरी - Convolvulus arvensis - (R) - Convolvulaceae
14. Doob grass - Cynodon dactylon - (K) - Giramineae
15. Motha - मौथा - Cyperus rotundus - (K) - Gramineae
16. Jangli Jute - Corchorus acutangulus - (K) - Cylaceae
17. Madar - Calotropis gigantia - (K) - Asclepiadaceae
18. Ban mircha - वन मिर्चा - Croton sparsiflorus - (K) - Euphorbiaceae
19. Masani - कासनी - Cinchorium intybus - (R) - Compositae
20. Bathua - बथुआ - Chenopodium album - (R) - Chenopodiaceae
21. Dhatura - धतूरा - Datura - (K) - Solanaceae
22. Lahasua - लहसुआ - Digera arvensis - (K) - Amaranthaceae
23. Makra - मकरा - Dactyloctenium - (K) - Amaranthaceae
24. Chhoti dudhi - छोटी दूधी - Euphorbia microfela - (K) - Euphorbiaceae
25. Bari dudhi - बड़ी दूधी - (K) Euphorbiaceae
26. Bhangra - भागंरा - Eclipta alba - (K) - Compositae
27. Sanwai - सवई - Echnichloa crusgalli - (K) - Cramineae
28. Jangli Gobhi - जंगली गोभी - Launea Splenifolla - (K) - Compositae
29. Pilli senji - सैजी - Melilotus Alba - (R) - Leguminaseae
30. Baisuri - बायसुरी - Pluchea Lanceolata - (R) - Compositae
31. Hazardana - हजार दाना - Phyllanthus niruri - (K) - Euphorbiaceae
32. Satgathia - सतगठियां - Sprgula arvensis - (R) - Umbelliferae
33. Jangali Keteli - भटकटइया - Solanum anthocarpum - (K) - Solanaceae
34. Mokai - मकोय - Solanum nigrum - Solanaceae
35 Kans - कांस - Saccharum spontaneum - (K) - Gramineae
36 Barru grass - बरू घास - Sorghum halepense - (K) - Gramineae
37 Gokhuru - गोखरू - Tribulus terrestris - (K) - Zygophyllaceae
38 Patherchata - Trinathema monogyna - (K) - Aizoaceae


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